Zakir Hussain Death News: उस्ताद अल्ला रक्खा खां के पुत्र पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह अमेरिका में निधन हो गया। उन्हें रविवार रात अमेरिका के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। उन्हें रक्तचाप की समस्या थी। परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रॉस्पेक्ट पीआर के जॉन ब्लेचर ने इसकी पुष्टि की।
मौसिकी की दुनिया में जिनके तबले की थाप एक अलहदा पहचान रखती है, वो उस्ताद जाकिर हुसैन नहीं रहे। 73 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रसिद्ध तबला वादक के परिवार ने सोमवार को यह जानकारी दी।परिवार ने बयान में कहा कि जाकिर हुसैन का निधन फेफड़े से संबंधी 'इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस' से हुईं जटिलताओं की वजह से हुई। वह 73 वर्ष के थे। हुसैन पिछले दो सप्ताह से अस्पताल में भर्ती थे। उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया था।
90 की दशक से ज़हन में बसे
90 की पैदाइश वाले लोगों के जेहन में दूरदर्शन की जो यादें अब तलक जिंदा है, उनमें दो बातें खास हैं, पहला तो वो अमर गीत 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' और दूसरा कई सारे यादगार विज्ञापन. उन दिनों एक चाय का विज्ञापन बहुत मशहूर रहा था। यमुना नदी का किनारा, ताजमहल का बैकग्राउंड और 'मुहब्बत की निशानी' के सामने बैठा एक नौजवान, जिसकी उंगलियां तो तबलों पर थिरकती ही थीं। बाल भी उसी गति से हवा से बातें करते हुए, क्या ही गजब लहराते थे, ये विज्ञापन भले ही चाय का रहा हो, लेकिन उस्ताद जाकिर हुसैन साहब इसके जरिए हर घर में मशहूर हो गए। हालांकि वैश्विक मंच पर उनकी एक अलग आभा तो पहले ही बन चुकी थी, लेकिन सरल-सहज मिडिल क्लास वाले आम परिवारों के बीच ये एक कलाकार की स्वीकार्यता थी। बाल बढ़ाए हुए बच्चे बरतन-भांडे बजाते हुए खूब झूमते हुए उस्ताद साहब की नकल करते थे।
घरवाले उन्हें मनहूस मानते थे
अब सोचिए कि जो आदमी घर-घर में इतना मशहूर हुआ, वह अपने ही घर में जन्म के बाद से ही थोड़ा अनदेखा सा रहा। अनदेखा कहना थोड़ी छोटी बात हो जाएगी, सीधे-सीधे कहें तो घरवाले उन्हें मनहूस मानते थे। लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर की किताब 'जाकिर हुसैन- एक संगीतमय जीवन' में उस्ताद साहब ने खुद अपनी जिंदगी जुड़ी ये बात बड़ी साझा की थी। बकौल किताब, वो बताते हैं कि 'मेरे पैदाइश के वक्त से ही मेरे वालिद दिल की बीमारी से परेशान रहने लगे थे और अकसर ही उनकी तबीयत खराब रहती थी। उधर, इसी दौरान हमारे घर का थोड़ा बुरा वक्त भी शुरू हो चला था। अम्मा बहुत परेशान रहने लगी थीं और ऐसे में किसी ने उनके कान में ये बात डाल दी कि ये बच्चा तो बेहद मनहूस है.' वो कहते हैं कि 'अम्मा ने ये बात मान भी ली और मुझे दूध नहीं पिलाया. मुझे तो पालने की जिम्मेदारी भी मेरे परिवार की एक करीबी ने उठाई. वो मेरे लिए सरोगेट मदर जैसी रहीं।' (एजेंसी)