महासमुन्द

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संसोधन हेतु PMO इंडिया को सुझाव

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संसोधन हेतु PMO इंडिया को सुझाव

प्रभात महंती 

वर्त्तमान स्थिति में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन निहायत जरुरी – डॉ. सुरेश शुक्ला

महासमुंद : जिले के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुरेश शुक्ला द्वारा चुनावी प्रक्रिया में आवश्यक संसोधन हेतु निर्वाचन आयोग तथा PMO इण्डिया को पत्र प्रेषित कर अपने सुझाव प्रस्त्तुत किया गया, उपरोक्त सुझाव में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की गरिमा के अनुरूप लोकहित में विषयवार अपने सुझाव दिया गया I हमारा भारत दुनिया की तमाम देशो के श्रेणी मे बुलंदियों की ओर निरंतर उत्तरोत्तर बढ़ते जा रहा है,

हमारा देश विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप मे भारत भूमि की एक अलग ही छाप बना रही है, हमारा देश जनसँख्या की दृष्टि से पुरे विश्व में दूसरा स्थान रखने के बावजूद आम नागरिको के माध्यम से सीधे मतदान की प्रक्रिया के कारण भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है तथा लोकतंत्र में आम चुनाव देश की खूबसूरती है, भारतीय राजनीती के अंतर्गत लोकतान्त्रिक व्यवस्था के संचालन तथा बनाये रखने के लिए 13 मई 1950 को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 तथा इसके पूर्ण क्रियान्वयन हेतु 17 जुलाई 1951 को लागु कर दिया गया उप्रोक्तानुसार स्वतंत्र भारत में निर्वाचन सम्पादित किया जा रहा है, चुनाव का मूल उद्देश्य संविधान निहित गरिमा को संधारित कर उसके अनुरूप लोकतांत्रिक ताना बाना को बनाये रखने के लिए निष्पादित किया जाना है I
 
समयानुकूल आवश्यकतानुसार निर्वाचन पद्धति में पारदर्शिता तथा गुणवत्ता उन्नयन हेतु समय समय पर अधिनियम में आंशिक संसोधन किया जाता रहा है I जनसँख्या वृद्धि के आधार पर बड़े राज्यों में सुव्यवस्था हेतु नये राज्यों का निर्माण किया गया साथ राज्यों में जिलो की संख्या भी बढ़ाई गई है व्यवस्था का सुचारु रूप से संचालन हेतु समस्त शासकीय विभागों को पदयुक्त कर जनसुविधा प्रदान किया गया है, लोकतान्त्रिक व्यवस्था को नीति संगत बनाये जाने हेतु देश में पहला आम चुनाव वर्ष 1951-1952(25 अक्तूबर 1951 – 21 फ़रवरी 1952) के मध्य हुआ, उपरोक्त चुनाव के बाद तीन चुनाव तक विधानसभा तथा लोकसभा साथ साथ चलता रहा परन्तु अनेक राज्यों में विधानसभा के बीच में ही भंग होने के परिणाम स्वरुप बना बनाया

सामंजस्य विरूपित हो गया समावेशी चुनाव होने से निश्चित रूप उपरोक्त चुनावधि में धन बल, जन बल तथा समय का बचत होता रहा होगा जो कि वर्त्तमान में यह स्थिति विकृत हो गया है जनसँख्या, तकनीकी विस्तार तथा राज्यों के विस्तार होने से पहले की तुलना में चुनाव अब अधिक खर्चीले हो गए है, बदलते परिशेष व् समय की मांग अनुसार विधानसभा व लोकसभा चुनावों को एक साथ कराये जाने की अधिक आवश्यकता है, देश के समस्त उर्जाओ को विकासीय सकारात्मक दिशा में लगाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संसोधन कर  एक देश एक चुनाव की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है I

साथ ही देश में कीर्तिमान रचने तथा विकासीय मांडल के सपने को साकार किये जाने हेतु वर्त्तमान मांग के अनुरूप लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में आंशिक संसोधन की आवश्यकता है, जिसमे से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुच्छेद 33 के आधार एक ही प्रत्याशी का एक से अधिक सीटो से चुनाव लड़ने की व्यवस्था दी गई है तथा इसी अधिनियम के अनुच्छेद 70 में प्रत्याशी एक ही सीट का प्रतिनिधित्त्व कर सकता है सूक्ष्मता से इसका अवलोकन किये जाने पर अनुच्छेद 33 तथा 70 प्रत्याशी तथा प्रतिनिधि हित संगत तो है परन्तु लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्र हित के लिए उपयुक्त नहीं लगते, एक ही व्यक्ति का एक से अधिक सीटो से चुनाव लड़ने का मुख्य वजह अपने आप को किसी एक जगह पर सुरक्षित रखना रहा है जिससे प्रत्याशी की प्रत्याशा तो स्पष्ट समझ आ रही है परन्तु ऐसे मामले में प्रत्याशी यदि दोनों सीट पर जीत हासिल कर लेता है तो एक सीट को छोड़ना होता है और छोड़े गए दूसरी सीट में उपचुनाव कराया जाता है जो की पुनः जनबल, धनबल तथा समय का प्रत्यक्ष क्षति है जिसका सीधा भार सरकार को या स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो जनता पर आता है  इसलिए एक प्रत्याशी एक सीट को अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए I

लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत तथा पारदर्शी बनाये जाने हेतु हमारे सरकारों द्वारा समय समय पर अनेक संसोधन किया गया है ठीक उसी प्रकार वर्त्तमान समय की मांग अनुसार चुनावों में इस प्रकार का संसोधन अत्यंत आवश्यक हो गया लोकतान्त्रिक व्यवस्था के सुचारू रूप से संचालन हेतु शासकीय तंत्र का समय बचत, चुनावी प्रक्रिया पारदर्शिता व् गुणवत्ता लाने हेतु पूर्व में जिस प्रकार हमने बैलेट पेपर के स्थान पर इवीएम् को महत्त्व दिया ठीक उसी प्रकार लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संसोधन कर बहुताधिक मात्रा में अनावश्यक धन, जन व् समय के अपव्यय से बचा जा सकता है I 

एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक होने के नाते राष्टहित के वर्त्तमान जरूरतों व् मांग को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जाना जरुरी समझते हुए आपके समक्ष अपने निजी विचारो को प्रस्तुत कर रहा हूँ, अतः उपरोक्त विषय पर प्रस्तुत सुझाव स्वीकार कर पर मंथन कर नवराष्ट्र निर्माण में विकसित भारत के संकल्प को आत्मसात करते हुए रचनात्मक व् सृजनात्मक भारत निर्माण में सहयोग व् मार्गदर्शन हेतु सुझाव प्रस्तुत किया गया I

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