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     अटल जी की जयंती पर कवर्धा भाजपा कार्यालय में लगी छाया चित्र प्रदर्शनी का उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा ने किया शुभारम्भ

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    राज्यपाल ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी की जयंती पर किया नमन

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दिल्ली में वकीलों की हड़ताल, जांचकर्ताओं को पेशी से छूट देने से न्याय प्रक्रिया पर गंभीर असर

Posted on :02-Sep-2025
दिल्ली में वकीलों की हड़ताल, जांचकर्ताओं को पेशी से छूट देने से न्याय प्रक्रिया पर गंभीर असर

डॉ. समरेंद्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार

नयी दिल्ली :  जांचकर्ताओं को अदालत में पेशी से छूट देने के आदेश के खिलाफ दिल्ली के जिला अदालतों में वकीलों की हड़ताल आज भी जारी रहने से न्यायालयों के काम काज पर व्यापक असर पड़ा है। वकीलों ने सोमवार को न सिर्फ अक्रामक हड़ताल किया, बल्कि अदालतों में  जगह जगह रास्ता रोककर विरोध प्रकट किया।इस वजह से न्यायिक कार्यों पर असर पड़ा है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने गत 13 अगस्त को जांचकर्ताओं को अदालतों में पेशी की अनिवार्यता से छूट दे दी ।इस आदेश के बाद से वे अब वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अदालतों में पेश हो सकते हैं। 

इस फरमान का विरोध करते हुए गत शनिवार से  जिला अदालतों के वलील हड़ताल पर हैं।डीबीसी सहित वकीलों के अनेक संगठनों ने इस हड़ताल का समर्थन किया है।चुनिंदे वकीलों एवं जानकारों ने इस मामले पर अपनी गंभीर प्रतिक्रियाएं भी दी है,जो इस प्रकार है:-

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नवेश कुमार ने कहा है,कि सरकार के इस आदेश से न्याय प्रक्रिया पर गंभीर असर पड़ेगा।जांचकर्ताओं की पहचान से लेकर क्रास करने में भी कई समस्याएं खड़ी होगी।अदालतों को भी सत्यता परखने में कठिनाई होगी।इससे न्याय के नैसर्गिक सिद्धान्त का उलंघन होगा।

दिल्ली हाई कोर्ट की अधिवक्ता अंशु कुमारी कहती हैं,कि सरकार का इस संबंध में नोटिफिकेशन पूरी तरह से अतार्किक एवं रूल ऑफ लॉ का उलंघन है।नयी व्यवस्था से न सिर्फ न्याय प्रभावित होगा, वल्कि कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होगी।

सुप्रसिद्ध चार्टड एकाउटेंट संजय कुमार तिवारी कहते हैं,कि सरकार के इस कदम से पीड़ित को न्याय नही मिल पायेगा।जांचकर्ताओं की मोनोपोली बढ़ जाएगी।सरकार इस तरह के आदेश से अघोषित आपातकाल लागू करना चाहती है।एल.एस.

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लोक सभा का मानसून सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित

Posted on :22-Aug-2025
लोक सभा का मानसून सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित

डॉ.समरेंद्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार

नयी दिल्ली : लोकसभा का मानसून सत्र आज अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। यह सत्र 21 जुलाई से शुरू हुआ था।पूरे सत्र के दौरान विपक्षी दलों के लगातार हंगामे एवं विरोध-प्रदर्शन  से संसद का माहौल गर्म रहा। सत्र के अंतिम दिन भी सदन की कार्यवाही सुबह 11 बजे शुरू होते ही विपक्षी सांसदों के विरोध और हंगामें के चलते कुछ देर बाद ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी।

इस सत्र के दौरान विपक्षी सांसद बिहार की मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) पर विस्तृत चर्चा की मांग करते रहे। विपक्ष ने भाजपा और चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में हेरफेर की साजिश का भी आरोप लगाया। सदन के भीतर और बाहर इसी मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरने की कोशिश की।

सत्र के आखिरी दिन अपने समापन भाषण में लोकसभा अध्यक्ष श्री बिरला ने सदन में लगातार और नियोजित व्यवधानों पर क्षोभ व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि लोकसभा या संसद परिसर में नारेबाजी, तख्तियां दिखाना और नियोजित व्यवधान संसदीय कार्यवाही की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं।

श्री बिरला ने कहा कि जनता को अपने प्रतिनिधियों से बहुत उम्मीदें होती हैं, इसलिए उन्हें सदन में अपने समय का सदुपयोग जनहित की समस्याओं एवं मुद्दों तथा महत्वपूर्ण विधेयकों पर गंभीर और सार्थक चर्चा के लिए करना चाहिए।

लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि सत्र के दौरान उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों को सदन में बोलने और महत्वपूर्ण विधेयकों एवं जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने के पर्याप्त अवसर दिए। हालांकि लगातार गतिरोध दुर्भाग्यपूर्ण रहा। श्री बिरला ने बताया कि सत्र की कार्यसूची में 419 तारांकित प्रश्न शामिल किए गए थे, लेकिन व्यवधानों के कारण केवल 55 प्रश्नों के ही मौखिक उत्तर दिए जा सके।

उन्होंने बताया कि सत्र की शुरुआत में सभी दलों ने यह निर्णय लिया था, कि इस सत्र में120 घंटे चर्चा और संवाद करेगा तथा कार्यमंत्रणा समिति भी इससे सहमत थी, लेकिन लगातार गतिरोध के कारण इस सत्र में मात्र 37 घंटे ही कामकाज हो पाया। 

श्री बिरला ने यह भी बताया कि सत्र के दौरान 14 सरकारी विधेयक पेश किए गए और 12 विधेयक पारित किए गए। उन्होंने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा 28 जुलाई को शुरू हुई और 29 जुलाई को प्रधानमंत्री के उत्तर के साथ इसका समापन हुआ। श्री बिरला ने बताया कि 18 अगस्त को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियों पर एक विशेष चर्चा शुरू की गई।

लोक सभा झलकियां

इस सत्र में लोक सभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियों पर विशेष चर्चा हुई।

इस मानसून सत्र में कुल 37 घंटे ही बैठक हो पाई, जबकि आवंटित समय 120 घंटे था।

मानसून सत्र की कार्यसूची में शामिल 419 प्रश्नों में से केवल 55 तारांकित प्रश्नों का ही मौखिक उत्तर दिया जा सका। 

सत्र के दौरान लोकसभा में 14 सरकारी विधेयक पेश किए गए और 12 विधेयक पारित किए ग

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भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति:द्रोपदी मुर्मू

Posted on :22-Aug-2025
भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति:द्रोपदी मुर्मू

डॉ. समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने आज कहा कि भारत न सिर्फ विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है,वल्कि उभरती हुई आर्थिक शक्ति भी है।श्रीमती मुर्मू यहां राष्ट्रपति भवन में भारतीय विदेश सेवा 2024 बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों को सम्बोधित कर रही थीं। इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षुओं को  बधाई दी। उन्होंने  कहा कि अधिकारियों को अपनी यात्रा शुरू करते समय सभ्यतागत ज्ञान के मूल्यों- शांति, बहुलवाद, अहिंसा और संवाद आदि को अपने साथ लेकर चलना चाहिए। साथ ही उन्हें अपने सामने आने वाली हर संस्कृति के विचारों, लोगों और दृष्टिकोणों के प्रति खुला रहना चाहिए। 

 

उन्होंने कहा कि उनके आसपास की दुनिया भू-राजनीतिक बदलावों, डिजिटल क्रांति, जलवायु परिवर्तन और बहुपक्षवाद के संदर्भ में तेज़ी से बदलाव देख रही है। युवा अधिकारियों के रूप में उनकी चपलता और अनुकूलनशीलता हमारी सफलता की कुंजी होगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच असमानता से उत्पन्न समस्याएं हों, सीमा पार क़आतंकवाद का ख़तरा हो या जलवायु परिवर्तन के निहितार्थ हों भारत आज विश्व की प्रमुख चुनौतियों के समाधान का एक अनिवार्य हिस्सा है। भारत न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि एक निरंतर उभरती हुई आर्थिक शक्ति भी है। हमारी आवाज़ का महत्व है।

राष्ट्रपति ने वर्तमान समय में सांस्कृतिक कूटनीति के बढ़ते महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हृदय और आत्मा से बने संबंध हमेशा मज़बूत होते हैं। चाहे वह योग हो, आयुर्वेद हो, श्रीअन्न हों या भारत की संगीत, कलात्मक, भाषाई और आध्यात्मिक परंपराएं हों, अधिक रचनात्मक और महत्वाकांक्षी प्रयास इस विशाल विरासत को विदेशों में प्रदर्शित और प्रचारित करेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे कूटनीतिक प्रयास हमारी घरेलू आवश्यकताओं और 2047 तक विकसित भारत बनने के हमारे उद्देश्य के साथ निकटता से जुड़े होने चाहिए। उन्होंने युवा अधिकारियों से आग्रह किया कि वे स्वयं को न केवल भारत के हितों का संरक्षक समझें, बल्कि उसकी आत्मा का राजदूत भी समझें। एल.एस.

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स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा लेने आये 30 आदिवासी छात्रों से मिले रक्षा मंत्री

Posted on :20-Aug-2025
स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा लेने आये 30 आदिवासी  छात्रों से मिले रक्षा मंत्री

डॉ.समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार

नयी दिल्ली :  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज यहां अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी समुदायों के 30 मेधावी उच्चतर माध्यमिक छात्रों के साथ मुलाकात की। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्री के साथ छात्रों की यह मुलाकात अंडमान और निकोबार कमांड (एएनसी) द्वारा आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय एकता यात्रा, "आरोहण"  के सहभागी छात्रों के साथ उनके साउथ ब्लॉक स्थित कार्यालय में हुई।ये छात्र कल लाल किले पर आयोजित मुख्य स्वतंत्रता दिवस समारोह में भी हिस्सा लेंगे।

इस मुलाकात के दौरान प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान और एकीकृत रक्षा अध्यक्ष एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित भी मौजूद थे।रक्षा मंत्री ने छात्रों को आने वाले समय में भारत को सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों में से एक बनाने में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया और उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं दीं। उन्होंने छात्रों को मिठाइयां भी खिलाई।

श्री सिंह ने बातचीत के दौरान मानवीय मूल्यों के महत्व पर ज़ोर दिया और उन्हें व्यक्ति के चरित्र निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण पहलू बताया। उन्होंने छात्रों से मानवीय मूल्यों पर अडिग रहने और शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ अपने चरित्र निर्माण पर भी समान रूप से ज़ोर देने का आह्वान किया।श्री सिंह ने छात्रों से हर चुनौती का आत्मविश्वास और निडरता से सामना करने का भी आग्रह किया। 

बैठक का समापन द्वीपसमूह के स्थानीय आदिवासी कारीगरों द्वारा हस्तनिर्मित स्मृति चिन्ह भेंट  के साथ किया गया। श्री सिंह ने एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय, दिल्ली क्षेत्र मुख्यालय और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह के नागरिक प्रशासन द्वारा समर्थित एएनसी की इस अनूठी पहल की प्रशंसा की। 
 
उल्लेखनीय है,कि आरोहण द्वीप से दिल्ली कार्यक्रम का उद्देश्य दूरस्थ द्वीपीय समुदायों के युवाओं को देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, आधुनिक बुनियादी ढांचे और शैक्षणिक अवसरों से परिचित कराना है।एल.एस.

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एकजुट होकर विकसित भारत का संकल्प पूरा करने का आह्वान

Posted on :08-Aug-2025
एकजुट होकर विकसित भारत का संकल्प पूरा करने का आह्वान

नयी दिल्ली : सुप्रसिद्ध शिक्षाविद संत कुमार चौधरी ने कहा है,कि एकजुट होकर हम वर्ष 2047 तक विकसित भारत के संकल्प को पूरा कर सकते हैं।श्री चौधरी कल शाम यहाँ एक निजी कार्यक्रम में बोल रहे थे।उन्होंने कहा कि भारत का यह अमृत काल है और अब इसे विकसित राष्ट्र बनने से कोई रोक नही सकता है।उन्होंने कहा कि इस समय शिक्षा व्यापार नहीं जनक्रांति का रूप ले लिया है।यही वजह है,कि पिछले दो तीन दशकों से शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार हुआ है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने मोदी सरकार के विकसित भारत के संकल्प का विस्तार से जिक्र किया।कार्यक्रम में पूर्व अभिनेत्री जया प्रदा भी मौजूद थीं।एल.एस।

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भारत किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा:मोदी

Posted on :08-Aug-2025
भारत किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा:मोदी

डॉ.समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार

नयी दिल्ली :  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि भारत किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। श्री मोदी ने यहां आईसीएआर पूसा में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के पश्‍चात सहभागियों को संबोधित करते हुए यह बात कही।उन्होंने कहा कि प्रो स्वामीनाथन एक महान वैज्ञानिक थे,जिन्होंने विज्ञान को जनसेवा के माध्यम में बदल दिया।

श्री मोदी ने कहा कि प्रो. स्वामीनाथन ने राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रो. स्वामीनाथन ने एक ऐसी चेतना जागृत की जो आने वाली सदियों तक भारत की नीतियों और प्राथमिकताओं का मार्गदर्शन करती रहेगी। 

डॉ.स्वामीनाथन के साथ अपने कई वर्षों के जुड़ाव को साझा करते हुए, श्री मोदी ने गुजरात की शुरुआती परिस्थितियों का स्‍मरण किया, जहां सूखे और चक्रवातों के कारण कृषि को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। इस चुनौती से निपटने के लिए श्री मोदी ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, मृदा स्वास्थ्य कार्ड पहल पर कार्य शुरू किया था। 

श्री मोदी ने कहा कि भारतीय कृषि की वर्तमान ऊंचाइयों को देखकर, डॉ. स्वामीनाथन जहां भी होंगे, उन्हें निश्चित रूप से गर्व महसूस होगा। उन्होंने कहा  कि भारत आज दूध, दालों और जूट के उत्पादन में अग्रणी स्थान पर है। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि !चावल, गेहूं, कपास, फलों और सब्जियों के उत्पादन में !भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है और साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश भी है।

प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछले वर्ष भारत ने अब तक का अपना सर्वोच्च खाद्यान्न उत्पादन हासिल किया। उन्होंने कहा कि भारत तिलहन क्षेत्र में भी रिकॉर्ड स्थापित कर रहा है, सोयाबीन, सरसों और मूंगफली का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।उन्होंने कहा कि किसानों का कल्याण देश की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने घोषणा की कि भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। उन्होंने किसानों की आय बढ़ाने, कृषि खर्च कम करने और राजस्व के नए स्रोत बनाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को दोहराया।

श्री मोदी ने कहा कि सरकार ने सदैव किसानों की शक्ति को राष्ट्रीय प्रगति की आधारशिला माना है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में बनाई गई नीतियां केवल सहायता के लिए नहीं, बल्कि किसानों में विश्वास जगाने के लिए भी हैं। उन्होंने कहा कि पीएम-किसान सम्मान निधि ने प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता के माध्यम से छोटे किसानों को सशक्त बनाया है, जबकि पीएम फसल बीमा योजना ने किसानों को कृषि जोखिमों से सुरक्षा प्रदान की है और पीएम कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से सिंचाई चुनौतियों का समाधान किया गया है।

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गायिका नैना लायल सालउड देहरादून की ब्रांड एम्बेसडर बनीं

Posted on :07-Aug-2025
गायिका नैना लायल सालउड देहरादून की ब्रांड एम्बेसडर बनीं

रवि सिंह

पत्रकार

नोएडा : पंजाबी गायिका नैना लायल को सालउड देहरादून का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया है। जेआईटीएम के प्रमुख प्रो.योगेश कुमार ने कल यहाँ अपने कार्यालय सहयोगियों को नैना का  ब्रांड एम्बेसडर के रूप में परिचय कराया।इस मौके पर नैना ने दो गीत प्रस्तुत की एवं प्रो. कुमार ने स्वरचित कविता पाठ किये। एल.एस.

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पीपीआई ने पत्रकारों की समस्याओं पर चिंता जताई

Posted on :07-Aug-2025
पीपीआई ने पत्रकारों की समस्याओं पर चिंता जताई

जयपुर : पीरियोडिकल प्रेस ऑफ इंडिया (पीपीआई)ने पत्रकारों की समस्याओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से इसे शीघ्र दूर करने की मांग की है।पीपीआई की राजस्थान इकाई के प्रमुख सन्नी आत्रेय की अध्यक्षता में संपन्न नवनियुक्त जिला कार्यकारिणी  के प्रथम सम्मेलन में यह मांग की गयी। इस सम्मेलन में पत्रकारों की विभिन्न समस्याओं को लेकर आगामी आंदोलन और संगठन के विभिन्न कार्यक्रमों पर भी गहन चर्चा हुयी।

इस मौके पर श्री आत्रेय ने पत्रकारिता की वर्तमान चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में हम पत्रकारों की अहम भूमिका है। समाज की विभिन्न समस्याओं को हम पत्रकार अपनी जान की परवाह किए बिना उठाते हैं,लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में सरकारों से हमें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। इससे पत्रकारों के समक्ष बड़ी चुनौतियां उत्पन्न हो गयी है।

उन्होंने कहा कि पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग लंबित है। पत्रकारों की आवास योजना भी लंबित है। छोटे अखबारों को विज्ञापन नहीं मिलने से उनके सामने आर्थिक संकट है। ऊपर से पीआरजीआई के कड़े नियमों ने अनेक अखबारों को बंद करने की स्थिति बना दी है। एल. एस।

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संत कबीर की रचनाएं आज भी प्रासंगिक:डॉ.मिश्रा

Posted on :07-Aug-2025
संत कबीर की रचनाएं आज भी प्रासंगिक:डॉ.मिश्रा

अपर्णा कुमारी

पत्रकार

नयी दिल्ली : सुप्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. बी.एन. मिश्रा ने कहा है,कि महान संत कबीर की रचनाएं आज भी प्रासंगिक है और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है। राजधानी के राजेन्द्र ऑडिटोरियम में गत दिनों आयोजित "अंतरराष्ट्रीय  कबीर संत सम्मेलन" में हिस्सा लेने आये डॉ.मिश्रा ने यह बात एक इंटरव्यू के दौरान कही।उन्होंने कहा कि संत कबीर ने धर्म ही नहीं कर्म, अर्थ एवं समाजबाद पर जो रचनाऐं 5-6 शतक पहले की उसकी प्रासंगिकता इस भौतिक युग में भी बनी हुई है और उस पर अमल कर हम बेहतर समाज एवं राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।

लोकमान्य तिलक लिखित गीता सार का अंगेजी भाषा मे अनुवाद करने वाले डॉ. मिश्रा ने कहा कि संत कबीर की रचनाओं पर श्रीमद् भगवत गीता का पूरा प्रभाव रहा,लेकिन उन्होंने आम जन की भाषा में इसे लोगों तक पहुंचाने में अपना अतुलनीय योगदान दिया।

पेशे से इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रहे डॉ. मिश्रा ने कहा कि संत कबीर ने कहा कि " सांई इतना दीजिए जामें कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूं साधु न भूखा जाय।" इस पंक्ति में धर्म,अर्थ,कर्म एवं समाजबाद समग्र रूप से निहित है।

डॉ.मिश्रा ने कहा कि इनकी रचनाएँ इतनी सरल एवं लोक भाषा में है,जिस वजह से सैकड़ों साल पूर्व समाज के बहुसंख्य लोगों को कई लाभकारी ज्ञान मिले।यही वजह है,कि देश- विदेश में संत कबीर के अनुयायियों की संख्या करोड़ो में है।एल.एस.

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आंखों की रोशनी के लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट का विकल्प पीपीपी :डॉ.अग्रवाल

Posted on :28-Jul-2025
आंखों की रोशनी के लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट का विकल्प पीपीपी :डॉ.अग्रवाल

उषा पाठक

वरिष्ठ पत्रकार

चेन्नई  :  सुप्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.अमर अग्रवाल ने कहा है,कि आंखों की रोशनी खो चुके लाखों रोगियों के लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट एक विकल्प है,लेकिन यह सर्जरी जोखिम भरा होता है।अब इसके बदले पिनहोल प्यूपिलोप्लास्टी (पीपीपी) सर्जरी अपनायी जा सकती है।

डॉ.अग्रवाल ने यह बात एक इंटरव्यू के दौरान कही। उन्होंने कहा कि पिनहोल प्यूपिलोप्लास्टी (पीपीपी)एक सर्जिकल तकनीक है, जिसमें टांकों की मदद से पुतली को छोटे केंद्रीकृत आकार में ढाला जाता है,जिससे अनियमित कॉर्निया वाले मरीजों की दृष्टि बेहतर होती है।

डॉ.अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल ग्रुप के चेयरमैन डॉ.अग्रवाल ने कहा कि कॉर्नियल ट्रांसप्लांट में सर्जरी से जुड़े जोखिम होते हैं।लंबे समय तक इम्यून सप्रेशन की ज़रूरत पड़ती है और यह डोनर कॉर्निया की उपलब्धता पर निर्भर करता है,जो लगातार कम होती जा रही है।

जाने माने नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अग्रवाल ने हाल ही में पिनहोल प्यूपिलोप्लास्टी नामक एक क्रांतिकारी तकनीक देश में पेश की है,जो कॉर्नियल ट्रांसप्लांट का एक सरल और अत्यंत प्रभावी विकल्प होने का दावा किया गया है।यह तकनीक रूस, वियतनाम और मिस्र सहित कई देशों में पहले ही व्यापक रूप से अपनाई जा चुकी है।

उन्होंने कहा कि यह तकनीक कॉर्निया की वैश्विक कमी का एक समाधान है, जिसके कारण लाखों लोग दृष्टिहीनता का सामना कर रहे हैं। जिन मामलों में कॉर्नियल ट्रांसप्लांट जोखिम भरा या व्यावहारिक नहीं होता, वहां यह तकनीक एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प के रूप में कार्य करती है।

डॉ.अग्रवाल ने दावा किया कि  यह प्रक्रिया केराटोकोनस, कस्कारिंग या हाईअर-ऑर्डर एबरेशन जैसी स्थितियों के कारण उत्पन्न कॉर्नियल असमानताओं वाले मरीजों की दृष्टि में उल्लेखनीय सुधार ला सकती है, जिससे कई बार चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस की ज़रूरत नहीं होती है।

डॉ.अग्रवाल ने कहा कि यह एक न्यूनतम इनवेसिव सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें आइरिस में एक छोटी, कस्टम साइज़ की केंद्रीकृत ओपनिंग (पिनहोल) बनाई जाती है,ताकि आने वाली रोशनी को फिल्टर किया जा सके। यह पिनहोल परिधीय विकृत किरणों को रोकता है और केवल केंद्रित किरणों को रेटिना तक पहुंचाता है, जिससे अनियमित कॉर्निया वाले मरीजों की दृष्टि स्पष्ट रूप से बेहतर हो जाती है। 

उन्होंने कहा कि कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की तुलना में इसमें जटिल सर्जरी, लंबा उपचारक समय और रिजेक्शन का खतरा होता है, पीपीपी एक सरल, तेजी से ठीक होने वाली, कम जोखिम वाली और प्रभावी तकनीक है।

डॉ.अग्रवाल ने दावा किया कि पिनहोल प्यूपिलोप्लास्टी की सबसे बड़ी ताकत इसकी सरलता में है। इस प्रक्रिया के लिए न तो महंगे उपकरणों की ज़रूरत होती है और न ही डोनर टिशू पर निर्भरता रहती है। इसे सामान्य नेत्र शल्य चिकित्सा उपकरणों की मदद से किया जा सकता है,जिससे यह तकनीक कम संसाधन वाले क्षेत्रों में भी आसानी से अपनाई जा सकती है। 

उन्होंने कहा कि यही कारण है, कि विश्वभर में विभिन्न स्तर के नेत्र चिकित्सा केंद्र इस तकनीक को तेजी से अपना रहे हैं,ताकि स्थानीय स्तर पर कॉर्नियल अंधत्व और दृष्टि विकृति के मामलों का समाधान किया जा सके। 

डॉ. अग्रवाल् ने कहा कि दुनियाभर में 2 करोड़ से ज़्यादा लोग दृष्टि बाधित या नेत्रहीन हैं, और इनमें से अधिकांश को कभी  कॉर्निया डोनर नहीं मिल पाएगा। कॉर्नियल अंधत्व के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, ऐसे में पिनहोल प्यूपिलोप्लास्टी एक विकल्प है। 

उल्लेखनीय है,कि इस ग्रुप की  देश एवं विदेशों में मौजूद 250 से अधिक अस्पतालों  में यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है और इसका लाभ लोंगो को मिल रहा है। राजधानी दिल्ली में इस ग्रुप का पहला अस्पताल इसी वर्ष शुरू हुआ है,जिसके प्रमुख एम्स के नेत्र विभाग के अध्यक्ष रहे जे.एस. टिटियाल को बनाया गया है। एल.एस.

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पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर धरना

Posted on :22-Jul-2025
पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर धरना

 एम.के.मधुबाला

पत्रकार

नयी दिल्ली : पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर लोगों ने आज यहां जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया।

अखिल भारतीय मिथिला राज्य  संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम की अगुआई समिति के अंतरराष्ट्रीय प्रमुख प्रो.अमरेंद्र झा एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता ई. शिशिर झा ने की।बाद में एक ज्ञापन भी दिया गया।एल.एस.

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विद्रोही के निधन पर पत्रकार यूनियनों ने शोक जताया

Posted on :22-Jul-2025
विद्रोही के निधन पर पत्रकार यूनियनों ने शोक जताया

नयी दिल्ली : वरिष्ठ पत्रकार रामनाथ विद्रोही के निधन पर पत्रकार यूनियनों के परिसंघ सहित अनेक  संगठनों ने गहरा शोक व्यक्त किया है एवं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। सार्क जर्नलिस्ट फोरम के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विद्रोही का कल सुबह उनके बिहार स्थित पैतृक गांव में निधन हो गया था।वह पिछले चार दशक से पत्रकारिता में सक्रिय थे।

पत्रकार यूनियनों के परिसंघ के समन्वयक डॉ.समरेन्द्र पाठक, एस.जे.एफ.के इंडिया चैप्टर के अध्यक्ष सुशील भारती, पेरिआडिकल प्रेस ऑफ इंडिया के प्रमुख डॉ. सुरेंद्र शर्मा एवं राजस्थान इकाई के प्रमुख सन्नी अत्री, इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष उदय मिश्र, राजस्थान पत्रकार संघ के पूर्व प्रमुख उमेन्द्र दाधीच ,भारतीय आल मीडिया पत्रकार संघ के प्रमुख डॉ अमानुल हक सहित अनेक वरिष्ठ पत्रकारों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है।एल.एस.

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अंतरराष्ट्रीय कबीर संत सम्मेलन सम्पन्न

Posted on :22-Jul-2025
अंतरराष्ट्रीय कबीर संत सम्मेलन सम्पन्न

मीनाक्षी चौधरी

पत्रकार

नयी दिल्ली : राजधानी दिल्ली में कल अंतरराष्ट्रीय कबीर संत सम्मेलन सम्पन्न हो गया। ऑल इंडिया मानव समाज ट्रस्ट की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में अनेक नामचीन संतो ने हिस्सा लिया।कार्यक्रम का उदघाट्न पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव ने किया। मुख्य अतिथि दिल्ली के भाजपा विधायक अभय वर्मा एवं विशिष्ट अतिथियों में रक्षा मंत्रालय में एडीजी अभय सिंह,सुप्रीम कोर्ट के वकील नवेश कुमार एवं शिक्षाविद डॉ बी.एन.मिश्र शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन संस्था के प्रमुख हीरा लाल प्रधान ने किया।एल.एस.

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प्रदीप बली ने किया सरदार पटेल इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त शिक्षकों को सम्मानित

Posted on :16-Jul-2025
प्रदीप बली ने किया सरदार पटेल इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त शिक्षकों को सम्मानित

बागपत, उत्तर प्रदेश :  विवेक जैन। जनपद बागपत के बली गांव में सुप्रसिद्ध समाजसेवी और भाजपा पंचायत प्रकोष्ठ के जिला संयोजक प्रदीप बली ने अपने आवास पर सरदार पटेल इंटर कॉलेेज बली मेवला के सेवानिवृत्त शिक्षकों को सम्मानित किया। प्रदीप बली ने सरदार पटेल इंटर कॉलेज बली मेवला के उप प्रधानाचार्य मास्टर वेदप्रकाश और मास्टर ब्रहमपाल को फूल माला व चादर औढ़ाकर और एक नई साईकिल, एक जोड़ी कपड़े और गुप्त धनराशि देकर सम्मानित किया। 

इस अवसर पर अनेकों वक्ताओं ने मास्टर वेदप्रकाश व मास्टर ब्रहमपाल जी के सेवा कार्यो की जमकर सराहना की। इस अवसर पर मैनेजर अजब सिंह, चौधरी संतराम, आचार्य रिंकू मंत्री आर्य समाज बली, इंटरनेशनल अवार्डी व महामहिम राष्ट्रपति व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार विपुल जैन बागपत, चौधरी राजपाल, सतीश ठेकेदार, जीतू, ओमबीर तेल वाले, बिजेन्द्र, कृष्ण मिस्त्री, सतपाल दूधिया, चौधरी जयवीर सिंह, सुन्दर महाशय जी, दिनेश सभासद, पप्पू फौजी, प्रविन्द्र दुकानदार, सुमित दरोगा सहित गांव के अनेकों गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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बिहार में बीजेपी की नई हिकमत - ए - अमली, तस्वीरों में चारों तरफ़ अंबेडकर, हक़ीक़त में नज़रियात ग़ायब: एम.डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस.)

Posted on :15-Jul-2025
बिहार में बीजेपी की नई हिकमत - ए - अमली, तस्वीरों में चारों तरफ़ अंबेडकर, हक़ीक़त में नज़रियात ग़ायब: एम.डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस.)

बीजेपी के जिस दफ़्तर की दीवारें जहां कभी सिर्फ़ दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर हुआ करती थीं, आज वहां डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की बड़ी-बड़ी तस्वीरें आवेज़ां हैं। ऐसा क्यों है?क्या ये नज़रीयाती तब्दीली है या महज़ चुनावी मजबूरी? ब- ज़ाहिर ये एक कोशिश है जिसका हदफ़ बिहार की 2025 की असेंबली इंतेख़ाबात में दलित और पसमांदा वोट बैंक को अपनी तरफ़ माइल करना है।

गुज़िश्ता लोकसभा इंतेख़ाबात के नतीजों ने बीजेपी को वाज़ेह पैग़ाम दिया है कि सिर्फ़ आला जातियों पर इनहिसार अब कामयाबी की ज़मानत नहीं बिहार जैसी रियासत में जहां दलित, ओबीसी, एससी / एसटी और पसमांदा वोटरों की मुश्तरका तादाद 65 फ़ीसद से ज़ायद है, वहां सियासी जमाअतें अब अपनी हिकमत-ए-अमली तब्दील करने पर मजबूर हो रही हैं।

पसमांदा तबके की क़ियादत और उनके वोट को मुनज़्ज़म अंदाज़ में हासिल करने के लिए बीजेपी अब “सबका साथ, सबका विकास" के नारे के साथ-साथ "सबका विश्वास" जीतने की मुहिम भी चला रही है। हालाँकि ये सिर्फ़ नारे हैं, हक़ीक़त में बरसर - ए - इक्तिदार पार्टी ने कुछ नहीं किया, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये एतिमाद महज़ तस्वीरें लगाने और नारों से हासिल हो सकता है? या अमली तौर पर भी कुछ काम करने होंगे? और क्या जनता इतनी नासमझ है कि चंद दिनों के लिए तस्वीरें लटकाने से ही अपना क़ीमती वोट जाया कर देगी?

क़ाबिले- ज़िक्र है कि दो साल क़ब्ल वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में एक जलसे के दौरान पसमांदा मुसलमानों का ज़िक्र करते हुए उनकी पसमांदगी पर हमदर्दी जताई थी। उनके बक़ौल, “पसमांदा मुसलमानों को माज़ी की हुकूमतों ने धोखा दिया है।" ये बयान सुनने में ख़ुशआइंद ज़रूर है, लेकिन सवाल ये है कि अगर वाक़ई मर्कज़ी हुकूमत पसमांदा मुसलमानों की ख़ैरख़्वाह है तो फिर आइन-ए-हिंद का वो इमतियाज़ी ऑर्डर सदरती हुक्म 1950- • आज तक क्यों नाफ़िज़ -उल-अमल है ? जिसके तहत मुसलमान या ईसाई दलित आज भी रिज़र्वेशन से महरूम हैं। अगर वाक़ई नीयत साफ़ है तो इस इमतियाज़ी हुक्म को ख़त्म कर के पसमांदा मुसलमानों को भी वही हुकूक दिए जाएं जो दूसरे दलितों को हासिल हैं। सिर्फ़ जलसों में नाम लेना, इंतेख़ाबी मंशूर में ज़िक्र करना और तस्वीरों के ज़रिए हमदर्दी ज़ाहिर करना काफ़ी नहीं, हक़ीक़ी इंसाफ तो पॉलिसी और क़ानून में तब्दीलियों से मिलेगा ।

और 75 साल गुज़रने के बाद भी देश रत्न बख़्त मियां उर्फ बतख मियां अंसारी आज भी इंसाफ़ के मुन्तज़िर हैं। वो कौन सी हुकूमत होगी जो उन्हें इंसाफ़ दिलाएगी या फिर सिर्फ़ "पसमांदा, पसमांदा” का राग ही आलापना काफ़ी है? दूसरी तरफ़, ये भी एक तल्ख़ हक़ीक़त है कि आज कई ऐसी पसमांदा मुस्लिम तंज़ीमें मौजूद हैं जो दानिस्ता या ग़ैर-दानिस्ता तौर पर बीजेपी के नज़रीये को मज़बूत करने में मसरूफ़ हैं। चाहे वो कोई पसमांदा मोर्चा हो, पसमांदा सभा हो कोई भी हो। सवाल ये नहीं है कि वो बीजेपी के साथ क्यों खड़ी हैं, सवाल ये है कि क्या वो वाक़ई अपने तबके के मफ़ाद में कोई तबदीली ला पाई हैं? न तो 1950 का सदरती हुक्म ख़त्म हुआ, न रिज़र्वेशन मिला, न तालीमी या मआशी तरक़्क़ी के लिए कोई ख़ास स्कीम दी गई - फिर ये क़ुरबत किस बुनियाद पर है? यक़ीनन ये मोहब्बत तो नहीं हो सकती, शायद मज़बूरी है या फिर सियासी मसलेहत। लेकिन क्या मुसलमान सिर्फ़ इस्तेमाल किए जाने के लिए रह गए हैं? सब तबक़ात को हुक़ूक़ मिल रहे हैं, मगर मुसलमान अब भी इफ़्तिदार के दरवाज़े से बाहर खड़ा है। वक़्त आ गया है कि पसमांदा तंज़ीमें अपना मुहासा करें: क्या वो वाक़ई अपनी क़ौम के मफ़ाद की नुमाइंदा हैं या महज़ इक्तिदार के मातहत काम करने वाले ?

गौरतलब है कि हाल ही में इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया ने तमाम रियास्ती इलेक्शन ऑफ़िसरों को हिदायत दी है कि वोटर लिस्ट में फ़र्ज़ी तरीक़े से जुड़े हुए नामों, मरहूमीन के नाम, और दुहरे इंद्राज ख़त्म कि जाएं। ये हिदायत अगरचे जम्हूरियत के इस्तिहकाम के लिए ख़ुशआइंद है, मगर ख़द्शा है कि इसकी आड़ में मख़सूस समाजी तबक़ों के वोटरों को निशाना न बनाया जाए। बिहार में पहले भी ये इल्ज़ाम लगता रहा है कि अक़ल्लीयतों और पसमांदा तबक़ात के वोट दानिस्ता तौर पर वोटर लिस्ट से हज़्फ़ किए जाते हैं। और उन्हें परेशान करने के लिए तमाम तरह के हर्बे इस्तेमाल किए जाते रहे हैं।

ये बात भी क़ाबिले-गौर है कि बिहार की सियासत में दलितों, ओबीसी और पसमांदा वोटरों की हैसियत हमेशा फ़ैसला कुन रही है, मगर अफ़सोस कि उनकी सियासी हैसियत को अक्सर महज़ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया गया। पार्टियाँ उनको क़ियादत में हिस्सा नहीं देतीं, सिर्फ़ उनके चेहरों को दिखा कर वोट हासिल करने की कोशिश करती हैं। नतीजा ये होता है कि जब हुकूमत बनती है तो पॉलिसी साज़ी में अक़ल्लीयत और पसमांदा तबकात नदारद रहते हैं या यूं कहें कि उन्हें इससे महरूम रखा जाता है।

बिहार में शेख, सैयद, पठान जैसी आला जात मुस्लिम तबक़ों के बरअक्स, अंसारी, क़ुरैशी, सलमानी, धोबी, हलवाई, मोमिन, मंसूरी जैसे पसमांदा मुसलमानों की अक्सरीयत तालीम, मआशत और सियासत में पिछड़ चुकी है। उनके लिए 1950 का सदरती हुक्मनामा आज भी सबसे बड़ी रुकावट बना हुआ है, जिसके तहत मुसलमान और ईसाई दलितों को रिज़र्वेशन से महरूम रखा गया। यही वो तबका है जो तालीम, सेहत, रोज़गार और इंसाफ़ के लिए सबसे ज़्यादा रियासत पर इनहिसार करता है, लेकिन उनकी नुमाइंदगी असेंबली से लेकर पंचायत तक में न के बराबर है।

बिहार के दलित, एससी / एसटी, ओबीसी और पसमांदा मुसलमान अब वो पुराने वोटर नहीं रहे जो नारों से बहल जाएं। वो सवाल पूछ रहे हैं कि हमारे वोट से हुकूमत बनती है, मगर हमारे बच्चों को नौकरी क्यों नहीं मिलती? हमें हर पाँच साल बाद याद किया जाता है, लेकिन पाँच साल तक भुला क्यों दिया जाता है? हमारे नाम पर पॉलिसियाँ बनती हैं, लेकिन फ़ायदा ऊँचे तबक़ों को क्यों पहुँचता है? ये सवाल अब सिर्फ़ जलसों में नहीं बल्कि चारों तरफ़ चौक-चौराहों पर भी गूंज रहे हैं।

ये भी हक़ीक़त है कि पसमांदा मुसलमानों का मामला और भी ज़्यादा पेचीदा है। उनके मसाइल, जैसे तालीम, रोज़गार, तहफ़्फ़ुज़, रिज़र्वेशन और समाजी इंसाफ़ वग़ैरा क़ौमी और रियास्ती सियासी मंज़रनामे से ग़ायब हैं। चंद पसमांदा रहनुमाओं जैसे अब्दुल कय्यूम अंसारी, अली हुसैन आसिम बिहारी वग़ैरा को आगे लाकर पसमांदा तबक़ात के जज़्बात को बहलाया जाता है। इसकी ज़िम्मेदार सब ही पार्टियाँ हैं चाहे वो कांग्रेस हो, आरजेडी हो, जेडीयू या कोई और सियासी पार्टी - सब ने मिल कर पसमांदा समाज का इस्तेहसाल किया है और उनके हुक़ूफ़ के लिए ज़मीनी सतह पर मेहनत नहीं की और न ही उनकी फ़लाह व बहबूद के लिए कोई ठोस इक़दामात किए और उनके तालीमी और इक्तिसादी हालात सबके सामने हैं।

दिलचस्प बात ये है कि जिन तंज़ीमों ने कभी अंबेडकर के ख़यालात को "समाज को तोड़ने वाला” कहा था, आज वही उन्हें "राष्ट्र नायक" क़रार दे रही हैं। ये तज़ाद इस बात का सुबूत है कि नज़रिया कभी -कभी सिर्फ़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, असल मक्सद इक्तिदार का हुसूल होता है।

आने वाले बिहार असेंबली इंतेख़ाबात में असल सवाल यही होगा कि दलित, ओबीसी और पसमांदा मुसलमान क्या अपने मसाइल के हल की बुनियाद पर वोट देंगे? क्या वो महज़ तस्वीरों, वादों और ज़ात-पात की सियासत से ऊपर उठ कर अपनी हक़ीक़ी क़ियादत को पहचानेंगे और अपनी ख़ुद की क़ियादत खड़ी करेंगे?

अगर सियासी जमाअतें वाक़ई दलितों और पसमांदा तबक़ात की तरक़्क़ी की ख़्वाहां हैं, तो उन्हें सिर्फ़ पोस्टर पर तस्वीर लगा कर या किसी दलित को रियास्ती सदर बना कर ख़ुशफ़हमी में नहीं रहना चाहिए, बल्कि ज़मीन पर इस्लाहात, तालीम, तहफ्फुज़, रोज़गार, रिज़र्वेशन और इंसाफ़ के हक़ीक़ी इक़दामात करने होंगे।

ये वक़्त है जागने का, पहचानने का, और सिर्फ़ "नज़रीयाती तस्वीरों" पर न बहकने का। सियासत को अगर बदलना है, तो वोटरों को भी अपना मिज़ाज बदलना होगा। अब की बार "सियासत में हिस्सेदारी नहीं तो वोट नहीं" का नारा पूरे बिहार में गूंजे तभी पसमांदा और पिछड़े तबक़ात अपना आइनी हक़ हासिल कर सकते हैं वरना आइंदा पाँच साल फिर ज़ुल्म-ओ-सितम, तशद्दुद और दूसरों के रहम-ओ-करम के लिए तैयार रहें - यही ज़मीनी हक़ीक़त है जिसे इस इंतेखाब में ज़रूर बदलना होगा ।

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जन संस्कृति मंच का 17वां राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न

Posted on :15-Jul-2025
जन संस्कृति मंच का 17वां राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न

 फासीवाद की विभाजनकारी संस्कृति के खिलाफ एकता, सृजन और संघर्ष का संकल्प 

 देश भर से 300 लेखक व संस्कृतिकर्मी एकजुट हुए 

 मशहूर रंगकर्मी जहूर आलम अध्यक्ष तथा लेखक व पत्रकार मनोज कुमार सिंह महासचिव चुने गए 

रॉंची :  जन संस्कृति मंच का 17वां राष्ट्रीय सम्मेलन 12 व 13 जुलाई को सोशल डेवलपमेंट सेंटर, रांची (झारखंड) में फासीवाद की विभाजनकारी संस्कृति के खिलाफ सृजन और संघर्ष के संकल्प व आगे की कार्य योजना तथा पदाधिकारियों, राष्ट्रीय कार्यकारिणी व परिषद के चुनाव के साथ संपन्न हुआ। इसमें बंगाल, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों से तीन सौ से अधिक लेखक, कलाकार और बुद्धिजीवी शामिल हुए।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए सोशल एक्टिविस्ट डॉ नवशरण सिंह ने कहा कि आज फ़ासीवाद का चौतरफा हमला हो रहा है। आज लोगों का साथ में मिलना-जुलना और बैठना भी आपराधिक गतिविधि मानी जा सकती है। यदि कोई शख्स बुद्धि और विवेक से भरा हुआ है तो वह आपराधिक दायरे में आ चुका है। उमर खालिद को फ़ासीवादियों ने पांच साल से जेल में डाल रखा है। दमन और विभाजन के औजारों का बर्बर इस्तेमाल सत्ता के द्वारा हो रहा है। 

नवशरण सिंह ने सीएए के खिलाफ महिलाओं के आंदोलन और किसान आन्दोलन की चर्चा की। इन आंदोलनों में हम जन एकता और संघर्ष की संस्कृति को देखते हैं। हम फ़ासीवादियों की नफ़रत को अपनी विरासत, आपसी मोहब्बत और एकता के सहारे परास्त करेंगे।

सम्मेलन में जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविभूषण ने कहा कि 2014 से पहले स्वाधीन भारत में कभी विभाजनकारी शक्तियां इतनी प्रबल नहीं थीं। भाजपा को बहुमत मिलने के बाद इस देश में एक भी लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्था नहीं बची है। लोकतंत्र के सभी स्तंभ ढह गए हैं। 

जाने माने दस्तावेजी फिल्मकार बीजू टोप्पो ने कहा कि झारखंड में विस्थापन विरोधी आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है जो बताता है कि यह संघर्ष की जमीन है। हमने जल जंगल जमीन और भाषा संस्कृति को बचाने की लड़ाई लड़ी है और अपने गीत, कविता और नाटक के माध्यम से फासीवाद से लड़ रहे हैं।

प्रलेस के महादेव टोप्पो ने कहा कि फासीवाद अब कोई अटकल नहीं है, बल्कि नग्न तांडव कर रहा है। जैसा कि मार्क्सवादी एजाज अहमद कहते हैं, हर देश अपने ढंग के फासीवाद का हकदार होता है। भारत में सदियों से महिलाओं, दलितों, आदिवासियों के खिलाफ हिंसा से जो आंख चुराई गई उसने फासीवाद के लिए रेड कार्पेट बिछाया। उमर खालिद से फादर स्टेन स्वामी तक के मामले में निगरानी राज्य का क्रूर चेहरा सामने आया है। फासीवादी के खिलाफ लड़ाई में प्रलेस कंधा से कंधा मिलाकर लड़ने को तैयार है।

जम्मू विश्वविद्यालय के प्रो राशिद ने कहा कि आज ऐसी चीजें घटित हो रही हैं जिसके बारे में कुछ साल पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था, जैसे बाजार में पानी बिकना, नदी का प्रवाह रोका जाना। हम लोग बचपन में देशभक्ति का एक गीत सुना करते थे - बारूद के ढेर पर बैठी है ये दुनिया, तुम हर कदम उठाना जरा देख-भाल के। लेकिन आज स्थिति ये हो गई है कि हमारे कदम ठिठक गए हैं। उन्होंने गाजा में इजराइली बर्बरता और ईरान पर साम्राज्यवादी हमले पर भी बात की।

दस्तावेजी फिल्मकार संजय काक ने जनवादी संस्कृति कर्म के अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट्री फिल्में पहले चंद लोगों तक सीमित थीं, लेकिन जब जनता के मुद्दों पर फ़िल्में बनने लगीं तो ऑडिटोरियम भरने लगे। लेकिन सत्ताधारी भी इसे देख रहे थे, धीरे धीरे अंकुश लगने लगे, स्क्रीनिंग रोकी जाने लगी। उन्होंने आज की पीढ़ी तक पहुंचने के लिए यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे नए मंचों का इस्तेमाल करने की सलाह दी। इन मंचों पर दक्षिणपंथी सक्रियता की काट जरूरी है।

जलेस के एम जेड खान ने कहा कि हम नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। डर से लब खामोश हैं। पूंजीवाद पोषित सांप्रदायिक फासीवाद का नंगा नाच चल रहा है। गोलवलकर के सपनों का भारत बनाने के क्रम में एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। धर्म संसद से एक समुदाय के सफाए का खुला आह्वान किया जाता और हर तरफ खामोशी है। उन्होंने कहा कि देश को आज राजनीतिक से ज्यादा सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत है।

इप्टा के शैलेन्द्र ने कहा कि हम एक सुंदर दुनिया के साझे ख्वाब से बंधे हैं। कहीं भी गरीब का खून बहता है तो हमें दर्द होता है। ग्राम्सी के शब्दों में कहें तो यह वैचारिक वर्चस्व का जमाना है। भारत में इसे ब्राह्मणवादी शोषण व्यवस्था से खाद पानी मिला है। बाजार की सत्ता से जुलूस से नहीं, बल्कि संस्कृति से लड़ा जा सकता है। हमारे सोच विचार, व्यवहार को बाजार और कॉरपोरेट तय कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी भी कॉरपोरेट का पॉलिटिकल प्रोड्यूस हैं, जिसे यही है राइट चॉइस बेबी बताकर बेच दिया गया। हमारी मोहब्बत और सौन्दर्यबोध नई दुनिया रचेंगे।

उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए प्रो आशुतोष ने कहा कि फासीवाद सांस्कृतिक प्रतिक्रांति है। आज आजादी की जगह भक्ति और दासता तथा समानता की जगह पितृसत्ता और वर्णव्यवस्था को स्थापित किया जा रहा है। इस प्रतिक्रांति को हमें परास्त करना है। प्रो उमा ने धन्यवाद ज्ञापित करने के साथ ही उमर खालिद की रिहाई के लिए एकजुटता का आह्वान किया। प्रो सुधीर सुमन ने शोक प्रस्ताव पढ़ा तथा एक मिनट के मौन के साथ यह सत्र समाप्त हुआ।

सम्मेलन के दूसरे दिन सांगठनिक सत्र था जिसमें महासचिव मनोज कुमार सिंह ने फासीवादी दौर, उसके हमले व चुनौतियां, जसम के कामकाज की समीक्षा तथा आगे के कार्यभार को लेकर प्रतिवेदन विचार के लिए प्रस्तुत किया। इस पर हुई चर्चा में विभिन्न राज्यों से आए दो दर्जन से अधिक प्रतिनिधियों ने अपने विचार व्यक्त किए। अनेक सुझाव आए। इस सत्र के अध्यक्ष मंडल की ओर से सियाराम शर्मा (छत्तीसगढ़), अहमद सगीर (बिहार) और कौशल किशोर (उत्तर प्रदेश) ने अपने विचार रखे। इस सत्र का संचालन प्रेम शंकर ने किया। प्रतिनिधियों के द्वारा दिए गए सुझावों को शामिल करते हुए सदन ने प्रतिवेदन को पारित किया।

सांगठनिक सत्र का दूसरा भाग चुनाव का था। वरिष्ठ रंगकर्मी, कवि-लेखक जहूर आलम को अध्यक्ष तथा लेखक व पत्रकार मनोज कुमार सिंह को महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। शिवमूर्ति, रामजी राय, मदन कश्यप,  भारत मेहता, लाल्टू, सुरेन्द्र प्रसाद सुमन और कौशल किशोर उपाध्यक्ष बनाए गए। वहीं सुधीर सुमन, अनुपम सिंह, रूपम मिश्र, अहमद सगीर और राजकुमार सोनी को सचिव तथा के के पांडेय को कोषाध्यक्ष चुना गया। सम्मेलन में 52 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और 213 सदस्यीय राष्ट्रीय परिषद भी चुनी गई। 

दोनों दिन शाम में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा विभिन्न सत्रों के दौरान झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना आदि राज्यों से आई सांस्कृतिक टीमों व कलाकारों द्वारा गीत-गायन, नृत्य, नाटक, काव्य की संगीतमय प्रस्तुतियां  हुईं जो सम्मेलन का विशेष आकर्षण का केंद्र थीं। 'हम होंगे कामयाब ' के गायन तथा अपने-अपने कार्य क्षेत्र में फासीवाद के विरुद्ध सांस्कृतिक अभियान को तेज करने की प्रतिबद्धता के साथ सम्मेलन समाप्त हुआ।

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गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु और श्री मदभागवत कथा की विशेष चर्चा की :- गौरी शंकर प्रिया

Posted on :11-Jul-2025
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु और श्री मदभागवत कथा की विशेष चर्चा की :-  गौरी शंकर प्रिया

गुरु पूर्णिमा पर ज्ञान, श्रद्धा और समर्पण का पर्व है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 

गुरू गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय'

बिहार : जामुई बिहार खैरा मे गौरी शंकर प्रिया ने विशेष रूप से चर्चा करते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान अत्यंत उच्च और पूजनीय माना गया है। ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है प्रकाश। जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाए, वही सच्चा गुरु होता है। गुरु हमें सही दिशा दिखाते हैं, जीवन को सार्थक बनाते हैं। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु पूर्णिमा का महत्व

पर बिहार के जमुई की साधारण परिवार में जन्मी गौरी शंकर प्रिया ने कहा गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर मानवता को ज्ञान का अमूल्य खजाना दिया। यही कारण है कि उन्हें सभी गुरुओं का गुरु माना जाता है।

गुरु का जीवन में स्थान

प्राचीन गुरुकुल प्रणाली से लेकर आज के आधुनिक शिक्षण संस्थानों तक, गुरु का स्थान अपरिवर्तित रहा है। वे न केवल विषय ज्ञान देते हैं बल्कि चरित्र निर्माण, नैतिकता, अनुशासन और आदर्शों का बीजारोपण भी करते हैं। कबीरदास जी ने कहा है:
'गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए॥'

यह दोहा गुरु की महिमा को दर्शाता है, जो ईश्वर का मार्ग दिखाते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन छात्र और अनुयायी अपने-अपने गुरु के पास जाकर उन्हें श्रद्धा और सम्मान अर्पित करते हैं। मंदिरों, आश्रमों और शिक्षण संस्थानों में विशेष कार्यक्रम, प्रवचन, भजन और पूजा-अर्चना की जाती है। कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं और आत्मचिंतन करते हैं। आज के समय में जब शिक्षा व्यवसाय बनती जा रही है, तब गुरु पूर्णिमा जैसे पर्व हमें गुरु-शिष्य परंपरा की पवित्रता और गहराई का स्मरण कराते हैं।

आधुनिक समय में आध्यात्मिक गुरु की भूमिका

आज के समय में भी शिक्षक (गुरु) समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तकनीक के युग में जहां इंटरनेट और मोबाइल ने सूचनाओं की भरमार कर दी है, वहां सही और गलत की पहचान कराने वाला मार्गदर्शक केवल एक गुरु ही हो सकता है। सांसारिक ज्ञान के अलावा गुरु का एक और रूप है - आध्यात्मिक गुरु। यह गुरु शिष्य को आत्मा, परमात्मा, मोक्ष और जीवन के वास्तविक उद्देश्य का ज्ञान कराता है। जैसे – श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का संबंध, संत कबीर और उनके शिष्य रैदास का जुड़ाव। यह दर्शाते हैं कि आध्यात्मिक गुरु शिष्य को लोक और परलोक दोनों में सफल बनाता 

गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, यह कृतज्ञता का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में सफलता केवल किताबों के ज्ञान से नहीं, बल्कि एक सच्चे गुरु के मार्गदर्शन से ही मिलती है। हमें चाहिए कि हम अपने गुरुओं का सम्मान करें, उनके दिखाए मार्ग पर चलें और ज्ञान को जीवन में उतारें। तभी यह पर्व वास्तव में सार्थक होगा।

सनातन धर्म में गुरु और शिष्य की परंपरा आदिकाल से ही चली आ रही है। तभी तो संत करीबदास लिखते है कि " गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये"। इस तिथि को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन और आशीर्वाद लेने का विशेष महत्व होता है। वैसे तो हर माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है लेकिन आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरु को समर्पित होती है। दिन शिष्य अपने गुरुओं का आभार व्यक्त करते हुए उनका नमन करते हैं। गुरु ही व्यक्ति को अज्ञानता से निकालकर प्रकाश रूपी ज्ञान की तरफ ले जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ है। वेद व्यास जी ने पहली बार इस जगत को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु की उपाधि दी गई हैं। आइए जानते हैं गुरु पूर्णिमा की तिथि, मुहूर्त और महत्व के बारे में। 

सनातन धर्म में गुरु और शिष्य की परंपरा आदिकाल से ही चली आ रही है। तभी तो संत करीबदास लिखते है कि " गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये"। कबीरदासजी का यह दोहा गुरु के प्रति सम्मान को व्यक्त करते हुए है। 'गुरु बिन ज्ञान न होहि' का सत्य भारतीय समाज का मूलमंत्र रहा है। माता बालक की प्रथम गुरु होती है,क्योंकि बालक उसी से सर्वप्रथम सीखता है।भगवान् दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बनाए थे। गुरु की महत्ता बनाए रखने के लिए ही भारत में गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन या व्यास पूजन किया जाता है। गुरु मंत्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।आप जिसे भी अपना गुरु बनाते हैं,आज के दिन विशेषरूप से उसके प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है।

सावन के महीने में श्रीमद् भागवत कथा का क्या महत्व है बहुत ही अच्छा होता है 

कथा की सार्थकता जब ही सिध्द होती है जब इसे हम अपने जीवन में व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय, मंगलमय बनाकर अपना आत्म कल्याण करें। अन्यथा यह कथा केवल ‘ मनोरंजन ‘, कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी । भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शंाति व मुक्ति मिलती है। इसलिए सद्गुरु की पहचान कर उनका अनुकरण एवं निरंतर हरि  स्मरण,भागवत कथा श्रवण करने की जरूरत है। 

श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है।

भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद् भागवत या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य  विषय भक्ति योग है, जिसमें श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरूपण भी किया गया है। भगवान की विभिन्न कथाओं का सार श्रीमद्भागवत मोक्ष दायिनी है। इसके श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलते हैं।श्रीमदभागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है

सत्संग व कथा के माध्यम से मनुष्य भगवान की शरण में पहुंचता है, वरना वह इस संसार में आकर मोहमाया के चक्कर में पड़ जाता है, इसीलिए मनुष्य को समय निकालकर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। ब’चों को संस्कारवान बनाकर सत्संग कथा के लिए प्रेरित करें। भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला के दर्शन करने के लिए भगवान शिवजी को गोपी का रूप धारण करना पड़ा। आज हमारे यहां भागवत रूपी रास चलता है, परंतु मनुष्य दर्शन करने को नहीं आते। वास्तव में भगवान की कथा के दर्शन हर किसी को प्राप्त नहीं होते। कलियुग में भागवत साक्षात श्रीहरि का रूप है। पावन हृदय से इसका स्मरण मात्र करने पर करोड़ों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है।इस कथा को सुनने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं और दुर्लभ मानव प्राणी को ही इस कथा का श्रवण लाभ प्राप्त होता है।श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण मात्र से ही प्राणी मात्र का कल्याण संभव है।

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श्रमिक संगठनों के भारत बंद का असर,बिहार में मतदाता पुनरीक्षण के खिलाफ चक्का जाम

Posted on :10-Jul-2025
श्रमिक संगठनों के भारत बंद का असर,बिहार में मतदाता पुनरीक्षण के खिलाफ चक्का जाम

डॉ.समरेन्द्र पाठक 

वरिष्ठ पत्रकार

साथ में तरुण मोहन,आर.के.राय, संजीव ठाकुर,एम.के मधुबाला एवं अन्य.

नयी दिल्ली :  केंद्र सरकार की कथित श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का आज भारत बंद का असर राजधानी दिल्ली सहित देशभर में रहा वहीं मतदाता सूची पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्ष के बिहार बंद से राज्य में अस्त व्यस्त का माहौल रहा। 

बिहार की राजधानी पटना में लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, राजद नेता तेजस्वी यादव एवं महागठबंधन के अन्य सहयोगियों के साथ सड़कों पर उतरें। सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने अपने समर्थकों के साथ रेल सेवा बाधित करने की कोशिश की। राज्य में कई स्थानों पर माहौल अस्त व्यस्त रहा। 

बिहार में महागठबंधन के कार्यकर्ताओं ने राजधानी पटना को जोड़ने वाले महात्मा गांधी सेतु को पूरी तरीके से बंद कर दिया । यहां घंटों सड़क के दोनों ओर गाड़ियों की लंबी-लंबी लाइन लगी रही, जिससे ट्रेन एवं प्लेन से सफर करने वाले यात्री अपने कंधे पर सामान लिए कई किलोमीटर पैदल ही जाने को मजबूर रहे। 

उधर श्रमिक संगठनों के भारत बंद का असर कश्मीर से कन्याकुमारी तक कहीं कम कहीं ज्यादे रहा। खासकर गैर एनडीए शासित राज्यों में इसका असर ज्यादे रहा। संगठन से जुड़े लोगों द्वारा दिल्ली एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं केरल में अनेक स्थानों पर प्रदर्शन किए जाने की खबर है। 

इस बंद का आयोजन इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस,ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर सभा,सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस,ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर,ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर,सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन,ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन एवं यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने किया था 

यूनियनों की ओर से इस हड़ताल में बैंकिंग, बीमा, डाक से लेकर कोयला खनन, राजमार्ग और निर्माण क्षेत्र में कार्यरत 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों  एवं कर्मियों के हिस्सा लेने का दावा किया गया है। 

संगठन के नेताओं ने इस आंदोलन को सरकार की श्रमिक विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ बताया है ।ट्रेड यूनियनों ने इससे पहले 26 नवंबर, 2020, 28-29 मार्च, 2022 और पिछले साल 16 फरवरी को इसी तरह की देशव्यापी हड़ताल की थी।

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SEBI की चुप्पी से उठे सवाल: 200 करोड़ के वरनियम क्लाउड घोटाले में हर्षवर्धन साबले अब भी फरारनिवेशकों में भय, विदेशी निवेश पर असर, और सिस्टम की गंभीर विफलता उजागर

Posted on :03-Jul-2025
SEBI की चुप्पी से उठे सवाल: 200 करोड़ के वरनियम क्लाउड घोटाले में हर्षवर्धन साबले अब भी फरारनिवेशकों में भय, विदेशी निवेश पर असर, और सिस्टम की गंभीर विफलता उजागर

नई दिल्ली :  वरनियम क्लाउड लिमिटेड के प्रमोटर हर्षवर्धन साबले पर ₹200 करोड़ से अधिक की वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप है, लेकिन इसके बावजूद वह अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं। इस मामले ने न केवल भारतीय पूंजी बाजार को झटका दिया है, बल्कि SEBI और देश की न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घोटाला साबले का पहला मामला नहीं है। इससे पहले वह Jump Networks (अब WinPro Industries) के माध्यम से निवेशकों को चूना लगाने के आरोपों में भी घिर चुके हैं।

धोखाधड़ी के प्रमुख आरोप:

₹200 करोड़ से अधिक की राशि का गबन कर देश से फरार होना।

IPO दस्तावेज़ (RHP) में अपनी जीवित बहन को मृत घोषित करना।

न्यायालयों में फर्जी बैंक रसीदें, नकली हस्ताक्षर और जाली RTGS दस्तावेज़ पेश करना।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी रेड कॉर्नर नोटिस के बावजूद अब तक गिरफ्तारी नहीं।

निवेशकों में डर, सिस्टम पर अविश्वास

निवेशकों में भारी असंतोष और भय है। उनका मानना है कि जब इस तरह के घोटालेबाज़ स्पष्ट सबूतों के बावजूद कानून से बच सकते हैं, तो साधारण निवेशक अपनी मेहनत की कमाई को शेयर बाजार में कैसे लगाएँ?

एक खुदरा निवेशक ने कहा, “हमसे कहा जाता है कि बाजार पारदर्शी और सुरक्षित है, लेकिन जब बड़े घोटालेबाज़ खुलेआम घूम रहे हैं, तो यह सुरक्षा सिर्फ कागज़ों पर है।”

भारतीय अर्थव्यवस्था और विदेशी निवेश पर असर

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की नियमित धोखाधड़ी की घटनाएं विदेशी निवेशकों को भी भारत से दूर करती हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की छवि को झटका लगता है, जिससे विदेशी संस्थागत निवेश (FDI/FII) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

अगर नियामक एजेंसियाँ समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं करतीं, तो इसका असर पूरे वित्तीय तंत्र और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

SEBI और न्यायपालिका की विफलता?

इस मामले ने SEBI की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।
निवेशकों और विशेषज्ञों का कहना है कि जब अदालतें फर्जी दस्तावेज़ों, गबन और रेड कॉर्नर नोटिस जैसी स्थितियों के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रही हैं, तब यह पूरी न्यायिक और निगरानी प्रणाली की प्रणालीगत विफलता को दर्शाता है।

निवेशकों की मांग:

SEBI प्रमुख तुहिन खन्ना सार्वजनिक रूप से बताएँ कि अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।

पूरे मामले को CBI को सौंपा जाए, ताकि निष्पक्ष और प्रभावी जांच हो सके।

कंपनी के सभी शेयरधारकों को औपचारिक रूप से सूचित किया जाए कि प्रमोटर फरार है।

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की धोखाधड़ी नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे नियामक संस्थाओं की निष्क्रियता और कानूनी ढिलाई देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रही है। अगर इस तरह के घोटालों पर समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं होती, तो यह भारत के वित्तीय भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी बन सकता है।

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आयुष पद्धतियों परआधारित चिकित्सा की लोकप्रियता बढ़ी: श्रीमती मुर्मू

Posted on :02-Jul-2025
आयुष पद्धतियों परआधारित चिकित्सा की लोकप्रियता बढ़ी: श्रीमती मुर्मू

डॉ.समरेन्द्र पाठक 

वरिष्ठ पत्रकार

गोरखपुर :  राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने आज  कहा कि आयुष पद्धतियों पर आधारित चिकित्सा की लोकप्रियता बढ़ रही है और महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय इसकी लोकप्रियता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

श्रीमती मुर्मू ने यहां महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय का उद्घाटन करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ऐसे विश्वविद्यालयों को इन पद्धतियों की वैज्ञानिक स्वीकार्यता बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभानी चाहिए। इस मौके पर राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। 

राष्ट्रपति ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय हमारी समृद्ध प्राचीन परंपराओं का एक प्रभावशाली आधुनिक केन्‍द्र है। इसका उद्घाटन न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं के विकास में एक उपलब्धि है।  उन्होंने कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि विश्वविद्यालय में विकसित उन्नत सुविधाएँ अब बड़ी संख्या में लोगों को उपलब्ध हैं। इस विश्वविद्यालय से संबद्ध लगभग 100 आयुष कॉलेज भी इसकी उत्कृष्टता का लाभ उठा रहे हैं।

उन्होंने प्रशासकों, डॉक्टरों और नर्सों से जनप्रतिनिधियों द्वारा शुरू किए गए कल्याणकारी उपायों को आगे बढ़ाने का आग्रह किया।उन्होंने सभी को सलाह दी कि वे किसी भी पेशे में प्रवेश करते समय खुद से किए गए वादेपर आत्मनिरीक्षण करें।एल.एस.

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