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बुन्देलखण्ड में भी की जा सकती है मखाना की खेती:प्रो. झा।

बुन्देलखण्ड में भी की जा सकती है मखाना की खेती:प्रो. झा।

 उषा पाठक / एम.के मधुबाला 

झांसी : प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं मखाना की खेती एवं इसके गुणकारी तत्वों पर विशेष शोध कर चुके  प्रो. विद्यानाथ झा ने कहा है,कि बुन्देलखण्ड के जल क्षेत्र में भी मखाना की खेती की जा सकती है और इससे जलीय अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी।  प्रो.झा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग  के समन्वयक डॉ आदित्य नारायण की ओर से आयोजित आनलाइन बैठक में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मखाना की खेती बुंदेलखण्ड के जलाक्रांत भागों में मार्च-अप्रैल के महीने में  की जा सकती है।

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प्रो. झा ने कहा कि मखाना एक अनोखा और बहुमुखी घटक है, जिसने अपने समृद्ध पोषण , चिकित्सीय गुणों और उल्लेखनीय स्वास्थ्य लाभों के कारण न्यूट्रास्युटिकल उद्योग में प्रमुखता हासिल की है।  उन्होंने कहा कि बेहतर स्वास्थ्य लाभ और बीमारियों को रोकने की इसकी क्षमता के कारण मखाना को एक पोष्टिक आहार कहा जा सकता है।  इस प्राचीन सुपर फूड के अधिक लाभों को उजागर करने के लिए इस पर लगातार शोध किए जा रहे है।उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की  प्रो.राधा चौबे का खास तौर से आभार जताया, जिन्होंने अपने शोध में मखाना में शुक्राणु गुण होने की पुष्टि की है। 

प्रो.झा ने कहा कि मखाना को न्यूट्रास्युटिकल उद्योग में प्रमुख बनना तय है।उन्होंने कहा कि अभी तक मखाना की खेती बिहार मिथिला तक सीमित है, लेकिन भविष्य में इसकी खेती अन्य जलीय क्षेत्रों में भी होने लगेगी। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के समय इसकी विश्वस्तरीय मांग बढ़ गयी थी। 

इस कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मुकेश पाण्डेय थे। इस चर्चा के दौरान नेपाल के प्रो. दिलीप झा ने मुख्य वक्ता के जीवनी पर प्रकाश डाला। प्रो.आर के सैनी चेयरपेर्सन के रूप में उपस्थित रहें। इसके अलावा देश के अन्य क्षेत्रों से इस चर्चा में डॉ सोनिका शर्मा, डॉ विवेक साहू, डॉ पी नाथ  डॉ विधू सक्सेन , डॉ अशोक श्रीवास्तव एवं श्री लाखन सिंह उपस्थित रहें।  डॉ सत्यवीर सिंह ने सहभागियों  का आभार व्यक्त किया । एल.एस.

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