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लेबनान में पेजर ब्लास्ट से इजराइल और ईरान के बीच बढ़ा तनाव, इजराइल से भिड़ने से क्यों बच रहा ईरान, कहीं युद्ध की तैयारी तो नहीं कर रहा?

लेबनान में पेजर ब्लास्ट से इजराइल और ईरान के बीच बढ़ा तनाव, इजराइल से भिड़ने से क्यों बच रहा ईरान, कहीं युद्ध की तैयारी तो नहीं कर रहा?

लेबनान में मंगलवार हुए हैं सिलसिलेवार पेजर ब्लास्ट

ईरानी राजदूत भी धमाकों में घायल होने वालों में शामिल

ईरान ने कहा है कि वह इस हमले का जवाब जरूर देगा

बेरूत: लेबनान में हुए पेजर ब्लास्ट ने इजरायल और ईरान के तनाव को एक बार फिर बढ़ा दिया है। दरअसल लेबनान में ईरान के राजदूत मोजतबा अमानी भी मंगलवार को हुए विस्फोट में घायल हुए हैं। उनकी आंख में चोट लगने की बात सामने आई है। वह फिलहाल अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में हैं। इस घटना का जिक्र करते हुए संयुक्त राष्ट्र में ईरानी दूत ने एक पत्र में कहा है कि ईरान लेबनान में अपने राजदूत को निशाना बनाकर किए गए हमले पर कार्रवाई करेगा। उन्होंने कहा कि ईरान जवाब देने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने अधिकारों को सुरक्षित रखता है। लेबनान और ईरान ने इजरायल को इन हमलों के लिए दोषी ठहराया है।

जुलाई में तेहरान में हमास नेता इस्माइल हानिया की हत्या कर दी गई थी। ईरान ने तब कहा था कि वह अपनी राजधानी में हुई उस हत्या का जवाब इजरायल को देगा। हालांकि ईरान ने कोई हमला इजरायल पर नहीं किया। माना गया कि एक पूर्ण युद्ध और बड़े नुकसान से बचने के लिए ईरान ने ऐसा किया। लेबनान धमाकों में अपने राजदूत को नुकसान के बाद फिर से सवाल उठ रहा है कि क्या ईरान चुप रह जाएगा या फिर इस बार क्षेत्र में कोई बड़ा संघर्ष होने जा रहा है। या फिर ईरान पूर्ण युद्ध में जाने की बजाय प्रॉक्सी के जरिए इजरायल को जवाब देने का रास्ता चुनेगा।

ईरान क्यों सीधे युद्ध से बच रहा है?
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान ने इराक के साथ कई साल चले युद्ध में भारी नुकसान उठाया। इस जंग ने ईरान को आर्थिक और सामाजिक रूप से तबाह कर दिया। उस युद्ध के बाद से ईरान का सत्तारूढ़ वर्ग किसी भी कीमत पर एक और पूर्ण युद्ध नहीं चाहता है। इराक पर अमेरिका के आक्रमण के बाद ईरान ने अपने प्रॉक्सी पर भरोसा किया है लेकिन अब उसे अपने अगले कदम के लिए जबरदस्त संसाधनों की आवश्यकता है। यही वजह है कि उसने अब तक इजरायल के उकसावे के बावजूद सीधे संघर्ष से परहेज किया है।

ईरान के सामने एक मुश्किल ये भी है कि इजरायल के साथ युद्ध अमेरिका के साथ सीधे संघर्ष में बदल सकता है, जिसकी निश्चित ही उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ईरान ने बीते कुछ वर्षों में हमास, हिजबुल्लाह जैसे गुटों के सहारे अपने हित साधने पर ज्यादा ध्यान दिया है। खासतौर से 2020 में सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने अपने प्रॉक्सी को अधिक स्वायत्तता दी ताकि वे किसी भी दायित्व से खुद को दूर कर सके। ये कई साल चलता रहा लेकिन बीते साल अक्टूबर में इजरायल पर हमास के हमले के बाद हाइब्रिड युद्ध का युग खत्म हो गया और गाजा में छिड़ी लड़ाई ने एक अलग तरह की स्थिति पैदा कर दी।
ईरान के लिए रेड लाइन क्या है?

गाजा में लड़ाई, तेहरान में हमला और अब लेबनान के धमाकों के बाद सवाल ये है कि आखिर ईरान के लिए रेड लाइन क्या है। ईरान के सामने इस समय क्षेत्रीय युद्ध से बचते हुए खुद को बचाए रखने की चुनौती है। ईरान तब तक अपने रणनीतिक धैर्य को बनाए रखेगा, जब तक वह अपनी रेड लाइन की रक्षा कर सके। ईरान के लिए रेड लाइन तेल और गैस फैसिलिटी, बंदरगाह और बांध, क्षेत्रीय अखंडता और अपने राष्ट्राध्यक्ष की सुरक्षा है।

ईरान का 'रणनीतिक धैर्य' सीधे तौर पर उसके परमाणु, सैन्य, खुफिया, आर्थिक और तकनीकी से जुड़ा हुआ है, जिसे उसने बिना किसी बड़ी रुकावट के बनाए रखा है। एक पूर्ण युद्ध उसके लिए जोखिम बढ़ाएगा। हालांकि एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि ईरान नहीं बल्कि इजरायल की प्रतिक्रिया काफी कुछ तय करेगी। साथ ही अमेरिका के मजबूत समर्थन होने का आश्वासन भी इजरायल के लिए अहम है। अमेरिका के समर्थन की वजह से ही ईरान कार्रवाई करने से झिझकता रहा है। (एजेंसी)

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