
सुनील कुमार जांगड़ा
फरीदाबाद : अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक डॉ हृदयेश कुमार ने अपनी कलम द्वारा दान की महिमा पर आधारित लिखा कि दान व पुण्य वही है जो एक हाथ से करें तो दुसरे हाथ को भी पता न हो।
एक गांव मे एक बहुत गरीब सेठ रहता था जो कि किसी जमाने बहुत बड़ा धनवान था जब सेठ धनी था। उस समय सेठ ने बहुत पुण्यं किये। गउशाला बनवाई, गरीबों को खाना खिलाया, अनाथ आश्रम बनवाए और भी बहुत से पुण्य काम किए थे। लेकिन जैसे जैसे समय गुजरा सेठ निर्धन हो गया।
एक समय ऐसा आया कि राजा ने ऐलान किया कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई पुण्य किए हैं तो वह अपने पुण्य बताएं और अपने पुण्य का जो भी उचित फल है ले जाए।
यह बात जब सेठानी ने सुनी तो सेठानी सेठ को कहती है कि हमने तो बहुत पुण्य किए हैं।
तुम राजा के पास जाओ और अपने पुण्य बताकर उनका जो भी फल मिले ले आओ।
सेठ इस बात के लिए सहमत हो गया और दुसरे दिन राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गया।
जब सेठ महल जाने लगा।सेठानी ने सेठ के लिए चार रोटी बनाकर बांध दी कि रास्ते मे जब भूख लगी तो रोटी खा लेना। सेठ राजा के महल को रवाना हो गया।
गर्मी का समय दोपहर हो गई सेठ ने सोचा सामने पानी की कुंड भी है वृक्ष की छाया भी है क्यों ना बैठकर थोड़ा आराम किया जाए व रोटी भी खा लूंगा।
सेठ वृक्ष के नीचे रोटी रखकर पानी से हाथ मुंह धोने लगा तभी वहां पर एक कुतिया अपने चार पांच छोटे छोटे बच्चों के साथ पहुंच गई और सेठ के सामने प्रेम से दुम हिलाने लगी क्यों कि कुतिया को सेठ के पास की रोटी की खुशबु आ रही थी।
कुतिया को देखकर सेठ को दया आई सेठ ने दो रोटी निकाल कुतिया को डाल दी । कुतिया भुखी थी सो बिना समय लगाए कुतिया दोनो रोटी खा गई और फिर से सेठ की तरफ देखने लगी।
सेठ ने सोचा कि कुतिया के चार पांच बच्चे इसका दुध भी पीते है दो रोटी से इसकी भुख नही मिट सकती और फिर सेठ ने बची हुई दोनो रोटी भी कुतिया को डाल कर पानी पीकर अपने रास्ते चल दिया।
संयोग से राजा उसी तरफ से निकलना हुआ। उसने यह नजारा दूर से देखा । फिर नजदीक आकर पेड की ओट से देखा और बिना आहट किये वहाँ से चला गया ।
अगले दिन सुबह सेठ राजा के दरबार मे हाजिर हो गया और अपने किए गए पुण्य के कामों की गिनती करने लगा।
और सेठ ने अपने द्वारा किए गए सभी पुण्य कर्म विस्तार पुर्वक राजा को बता दिए और अपने द्वारा किए गए पुण्य का फल देने बात कही।
तब राजा ने कहा कि आपके इन पुण्य का कोई फल नही है यदि आपने कोई और पुण्य किया है तो वह भी बताएं शायद उसका कोई फल मै आपको दे पाउं। सेठ कुछ नही बोला और यह कहकर बापिस चल दिया कि यदि मेरे इतने पुण्य का कोई फल नही है तो और पुण्य गिनती करना बेकार है अब मुझे यहां से चलना चाहिए।
जब सेठ बापिस जाने लगा तो राजा ने सेठ को आवाज लगाई कि सेठ जी आपने एक पुण्य कल भी किया था वह तो आपने बताया ही नही।
सेठ ने सोचा कि कल तो मैनें कोई पुण्य किया ही नही राजा किस पुण्य की बात कर रहा है क्यों कि सेठ भुल चुका था कि कल उसने कोई पुण्य किया था।
सेठ ने कहा - कि राजा जी कल मैनें कोई पुण्य नहीं किया तो राजा ने सेठ को कहा कि कल तुमने एक कुतिया को अपने हिस्से की चार रोटी खिलाई और तुम उस पुण्य कर्म को भुल गए। कल किए गए तेरे पुण्य के बदले तुम जो भी मांगना चाहते हो मांग लो वह तुझे मिल जाएगा। सेठ ने पूछा - कि राजा जी ऐसा क्यों मेरे किए पिछले सभी कर्म का कोई मुल्य नही है और एक कुतिया को डाली गई चार रोटी का इनका मोल क्यों?
राजा ने कहा.......हे सेठ जो पुण्य करके तुमने याद रखे और गिनकर लोंगों को बता दिए वह सब बेकार है क्यों कि तेरे अन्दर मै बोल रही है कि यह मैनें किया तेरा सब कर्म व्यर्थ है जो तू करता है और लोगों को सुना रहा है।
जो सेवा कल तुमने रास्ते मे कुतिया को चार रोटी पुण्य करके की वह तेरी सबसे बड़ी सेवा है उसके बदले तुम मेरा सारा राज्य भी ले लो वह भी बहुत कम है।
दान व पुण्य वही है जो एक हाथ से करें तो दुसरे हाथ को भी पता न हो।
शास्त्रों में कहा गया है दान की महिमा तभी होती है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि देना उतना जरूरी नहीं होता जितना देने का भाव’। अगर हम किसी को कोई वस्तु दे रहे हैं लेकिन देने का भाव अर्थात इच्छा नहीं है तो वह दान झूठा हुआ, उसका कोई अर्थ नहीं।
इसी प्रकार जब हम देते हैं और उसके पीछे यह भावना होती है, जैसे पुण्य मिलेगा या फिर परमात्मा इसके प्रत्युत्तर में कुछ देगा, तो हमारी नजर लेने पर है देने पर नहीं तो क्या यह एक सौदा नहीं हुआ ?
चिंतन कीजिये