
भारतवंशियों ने अपनी विद्वता का लोहा मनवाया: डॉ. कर्ण सिंह
भारतीय अपनी संस्कृति की चारों शाखाओं को संभालकर रखें: डॉ योगेंद्र नारायण
नई दिल्ली : भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र गुरुग्राम, चाणक्य वार्ता, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय ओडिशा, डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, हंसराज कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्रीमती कांति देवी जैन स्मृति त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय व्याख्यमाला के पंचम संस्करण के दूसरे दिन भारतवंशी संस्कृति के पुरोधा, पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. कर्ण सिंह जी द्वारा भेजे गए विशेष शुभकामना संदेश में कहा गया कि श्रीमती कांति देवी जैन की स्मृति में स्थापित ट्रस्ट द्वारा प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीन दिवसीय व्याख्यमाला का आयोजन किया जाता है। यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। जिसमें संपूर्ण विश्व के विद्वान भाग लेकर अपने विचार रखते हैं। इस वर्ष पंचम व्याख्यान माला में आपने मुझे मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। समाज सेवा में अग्रणीय भूमिका निभाने वाली श्रीमती कांति देवी जैन को नमन।
मुझे यह जानकर गर्व की अनुभूति हुई है कि इस प्रतिष्ठित व्याख्यान माला में विगत वर्षों में 30 से अधिक देशों के 6000 से अधिक बुद्धिजीवी भाग ले चुके हैं। अनेक देशों में यात्रा के दौरान मुझे अनुभूति हुई कि भारत की संस्कृति ने विदेशों में अमिट छाप छोड़ी है। हमने वसुदेव कुटुंबकम का केवल संदेश ही नहीं दिया, बल्कि उसको आत्मसात भी किया है। भारत वंशियों ने विश्व के कोने-कोने में जाकर अपनी प्रतिभा, योग्यता व विद्वता का लोहा मनवाया साथ ही भारतीय संस्कृति को वहां पर स्थापित भी किया। यह कार्य निरंतर चल रहा है मैं इस महत्वपूर्ण कार्य में लगे सभी विद्वानों का अभिनंदन करता हूं।
मैं इस महत्वपूर्ण व्याख्यान माला की सफलता की कामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि चाणक्य वार्ता परिवार इसी प्रकार निरंतर भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार में अपना योगदान देता रहे। मुख्य अतिथि राज्यसभा के पूर्व महासचिव, पूर्व रक्षा सचिव डॉ. योगेंद्र नारायण ने कहा कि खुशी की बात है कि भारतीय संस्कृति पूरे विश्व मे फैली हुई है। किसी भी संस्कृति को परिभाषित करना मुश्किल काम है। मैं यहा आपको भारतीय संस्कृति की चार शाखाओं के बारे में बताऊंगा। उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्कृति देश के संविधान में मिलती है जिसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि देश का हर नागरिक सामाजिकता, न्याय, विश्वास, धर्म, प्रतिष्ठा, अवसर, क्षमता, उत्सव, गरिमा, राष्ट्रीय एकता को अश्रणु रखेगा। अर्थात भारतीय संस्कृति संविधान में पूर्ण रूप से सम्मलित है।
दूसरी शाखा सामाजिक है। जिसमें सब धर्मों को एक बराबर रखकर व्यक्तियों को एक दूसरे की मदद करने की सीख दी जाती है। यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। तीसरी पारिवारिक संस्कृति है। इसमें माँ- बाप बच्चों की देखभाल करते हैं। उन्हें चलना- फिरना,बोलना,बड़ो का सम्मान करना करना सिखाते हैं। लेकिन अमेरिका जैसे देशों में इसमें विकृति आ गई है। माता पिता को इस विकृति पर ध्यान देने की जरूरत है। चौथा व्यक्तिगत है। इसके तहत हमें एक दूसरे की मदद करनी है। आदर सत्कार करना होता है। यह भावना पैदा होने से स्वत ही लड़ाइयां समाप्त हो जाएंगी। उन्हीने कहा यही भारतीय संस्कृति है।
यूक्रेन से डॉ यूरी बोलरविकिन ने कहा कि मैंने दिल्ली से हिंदी की पढ़ाई की और आज यूक्रेन में हिंदी पढ़ा रहा हूँ। उन्होंने कहा कि यूक्रेन में बहुत समय बाद आधुनिक भारत के बारे में पढ़ाया जा सका। उन्होंने कहा कि यूक्रेन में 70 प्रतिशत लडकिया ही भाषा विज्ञान पढ़ती है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीन संस्कृति है। यही ऐसा देश है जिसकी संस्कृति सदियों से बिना बदलाव के विकसित होती आ रही हैं।
ओमान से डॉ परमजीत ओबराय ने कहा कि ओमान की 75 लाख की जनसंख्या है। बाहर से आने- जाने वालों की जनसंख्या घटती- बढ़ती रहती है। हिंदी, संस्कार, संस्कृति उसकी आधारशिला भारतीय संस्कृति से मिलती- जुलती है। ओमान के लोग धार्मिक, ईमानदार, मददगार होते हैं। मानवता व विनम्रता इनकी रग- रग में बसी है। यहा भिखारी नही है। मध्यम वर्गीय परिवारों को सरकारी सुविधाएं मुहहैया होती है। गुस्सा उनकी परंपरा में नही है।
त्रिनिनाद से आशा मोर ने कहा कि यहा 45 फीसदी भारतीय मूल के और 45 प्रतिशत अफ्रीका मूल के लोग हैं। यहा सभी धर्मों व जातियों के लोग रहते हैं। सभी मिलजुलकर त्यौहारो को मनाते हैं। हिन्दू व ईसाई एक दूसरे से शादी भी करते हैं। दिवाली, रामलीला, दुर्गा पूजा, गणेश उत्सव,नवरात्र, पितृपक्ष मनाए जाते हैं। दक्षिणी अफ्रीका से उषा देवी शुक्ला ने कहा कि यहा भारतीय मूल के हर प्रदेशों के लोग भारतीय संस्कृति व परंपरा साथ लेकर आये थे। सनातन धर्म परंपरा, पूजा, भाषा लेकर आए। 164साल बाद भी यहा भारतीय संस्कृति व मूल्य जीवित है। यहा कहा जाता है कि राम का नाम लिए जा अपना काम किये जा। हरि सो भजे सो हरि का होय।
कार्यक्रम अध्यक्ष मिथिल पी राव ने कहा कि भारतीय दूसरे देशों में भारत के एम्बेसडर का काम करते हैं। दूसरे देश में जाकर स्थापित होना बहुत बड़ी चुनौती है। भारतवंशियों ने विदेशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार व प्रचार किया है। कार्यक्रम का सफल संचालन धर्मपाल महेंद्र जैन ने किया जबकि डॉ अमित जैन ने अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र गुरुग्राम के बारे में विस्तार से जानकारी दी एवं सभी का स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन आर पी तोमर ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से अवनीश कुमार, ईश्वर करुण, अमित गुप्ता, डॉ रविता पाठक, प्रिंस जैन, विश्वास कुमार रुड़की, अमर सिंघल, आशुतोष, विश्वमित्र गोस्वामी, रमाकांत दीक्षित, विद्यावती, जगबीर सिंह, नटवर सिंह, अल्पनादास, अनुपमा अग्रवाल, डॉ धर्मेंद्र अस्थाना, उमेश आदि ने भाग लिया।