नईदिल्ली : देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) बीआर गवई ने अनुसूचित जाति (एससी) को शिक्षण संस्थाओं ओर सरकारी नौकरियों में आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल नहीं करने की वकालत की है। ‘75 वर्षों में भारत और जीवंत भारतीय संविधान' नामक एक कार्यक्रम को संबोधित में सीजेआइ गवई ने यह बात कही है। उन्होंने कहा, आरक्षण के मामले में एक आइएएस अधिकारी के बच्चों की तुलना गरीब खेतीहर मजदूर-किसान के बच्चों से नहीं की जा सकती। बता दें कि, सीजेआइ गवई खुद अनुसूचित जाति से आते है और वह इस वर्ग से न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाले दूसरे जज हैं।
ओबीसी की तरह एससी वर्ग पर भी यह अवधारणा लागू हो
सीजेआइ ने अपने व्याख्यान में कहा कि, वह अभी भी एससी आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण संबंधी इंद्रा साहनी केस में दिए फैसले में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू की थी, यह एससी वर्ग पर भी लागू होना चाहिए। उन्होंने एक फैसले में यह विचार रखा तो उनकी काफी आलोचना हुई।
देश में समानता या महिला सशक्तिकरण की गति बढ़ी
सीजेआइ ने आगे कहा कि हालांकि मेरे रिटायर होने में मात्र एक सप्ताह बचा है और किसी जज से अपने फैसले को उचित ठहराने की अपेक्षा नहीं की जाती। सीजेआइ ने कहा कि पिछले कुछ सालों में देश में समानता या महिला सशक्तिकरण की गति बढ़ रही है और उनके साथ होने वाले भेदभाव की कड़ी आलोचना की गई है।
पहले कह चुके विधायिका करे नीतिगत निर्णय
सीजेआइ गवई आरक्षण में वर्गीकरण (कोटे में कोटा) के पक्ष में फैसला देने वाली संविधान पीठ के भी सदस्य थे। उस मामले में उन्होंने अलग से अपना निर्णय लिख वर्गीकरण का समर्थन करते हुए एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने का विचार रखा था। क्रीमी लेयर लागू करने की मांग को लेकर एक अन्य याचिका की सुनवाई करते हुए भी उन्होंने जनवरी 2025 में मौखिक टिप्पणी की थी कि पिछले 75 वर्षों को ध्यान में रखते हुए ऐसे व्यक्ति जो पहले ही लाभ उठा चुके हैं उन्हें आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए। इस नीतिगत मसले पर केंद्र व राज्य की विधायिका को विचार कर निर्णय करना चाहिए।(एजेंसी)






























