साठ के दशक में जब महमूद की कॉमेडी की लहर फिल्मों मे चलना शुरू हुई थी तब उस वक्त के कई स्थापित कॉमेडियन्स अपनी चमक खोने लगे थे। लेकिन राजिंदरनाथ इकलौते ऐसे कॉमेडियन थे जो महमूद लहर में भी इंडस्ट्री में टिके हुए थे। और पूरी मजबूती से जमे हुए थे। आज राजिंदरनाथ जी की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन यानि 13 फरवरी को साल 2008 में राजिंदरनाथ जी की मृत्यु हुई थी। राजिंदरनाथ जी पुरानी फिल्मों के स्टार कॉमेडियन थे। किसी फिल्म में राजिंदरनाथ के होने का मतलब है कि उस फिल्म में कुछ बहुत बढ़िया कॉमेडी सीन्स होना।
राजिंदरनाथ जी का परिवार यूं तो पेशावर से ताल्लुक रखता था। लेकिन राजिंदर जी का जन्म हुआ था 8 जून सन 1931 में मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में। चूंकि राजिंदरनाथ जी के पिता ब्रिटिश पुलिस सेवा में ऊंचे ओहदेदार अफसर थे तो उस दौरान उनकी ड्यूटी अविभाजित भारत के मध्यप्रांत में स्थित टीकमगढ़ में चल रही थी। राजिंदरनाथ जी की पढ़ाई रीवा से हुई थी। कांग्रेस के बड़े नेता रहे अर्जुन सिंह राजिंदरनाथ जी के ना सिर्फ सहपाठी थे। बल्कि बहुत अच्छे दोस्त भी थे।
यूं तो राज कपूर के परिवार से इनके परिवार की नातेदारी पहले से थी। मगर जब राज कपूर और राजिंदरनाथ जी की बहन कृष्णा की शादी हुई तो ये नातेदारी मजबूत रिश्तेदारी में बदल गई। जी हां, राजिंदरनाथ ऋषि कपूर जी के सगे मामा थे। राजिंदरनाथ जी की छोटी बहन उमा की शादी फिल्म इंडस्ट्री के एक और नामी अदाकार प्रेम चोपड़ा जी से हुई थी। यानि प्रेम चोपड़ा और राज कपूर राजिंदरनाथ जी के जीजा थे। इनके बड़े भाई प्रेमनाथ चूंकि एक्टर थे तो जब राजिंदरनाथ जी की पढ़ाई खत्म हुई तो उन्होंने इन्हें मुंबई बुला लिया था।
मुंबई आकर ये पृथ्वीराज कपूर की नाटक कंपनी से जुड़ गए और थिएटर करने लगे। इसी के साथ कुछ फिल्मों में राजिंदरनाथ जी को छोटी-छोटी भूमिकाएं भी मिलने लगी थी। लेकिन वो भूमिकाएं इतनी छोटी थी कि कोई इन्हें नोटिस नहीं कर सका। बड़े भाई प्रेमनाथ नामी एक्टर थे तो राजिंदरनाथ मुंबई में बेफिक्री की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। उन्हें अपने भविष्य की कोई फिक्र नहीं थी। मगर इनके भाई को इनकी फिक्र थी। इसलिए जब वो इन्हें लापरवाह देखते थे तो उन्हें खूब गुस्सा आता था। एक दिन जब प्रेमनाथ जी के सब्र का बांध टूट गया तो उन्होंने राजिंदरनाथ को घर से निकाल दिया।
वैसे, बड़े भाई ने इनके रहने का इंतज़ाम भी कर दिया था। लेकिन एक दूसरे मकान में। वो इन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते थे। उसी मकान में यश जौहर भी रहते थे। जो खुद भी उस वक्त संघर्ष कर रहे थे। राजिंदरनाथ जी के पास एक स्कूटर हुआ करता था। लेकिन उसमें पेट्रोल भराने के पैसे इनके पास नहीं होते थे। कई दफा खाने के लिए इन्हें अपने जान-पहचान वालों के पास जाना पड़ता था। ये सब जब रोज़ की बात हो गई तो राजिंदरनाथ जी की आंखें खुली और ये अपने भविष्य व करियर को लेकर गंभीर होने लगे। और इन्हें अहसास हो गया कि बड़े भाई प्रेमनाथ ने इन्हें इनके भले के लिए ही घर से निकाला था।
राजिंदरनाथ जी ने जी लगाकर काम करना शुरू कर दिया। कुछ फिल्मों में इन्हें बड़ी व नोटिसेबल भूमिकाएं मिली। हालांकि वो फिल्में फ्लॉप हो गई। लेकिन साल 1959 में आई हम सब चोर हैं नाम की फिल्म में राजिंदरनाथ जी का निभाया छोटा सा कॉमिक रोल इनके लिए फायदे का सौदा साबित हुआ। लोगों ने इन्हें पहचानना शुरू कर दिया। इसी साल आई शरारत में एक बार फिर से राजिंदरनाथ की कॉमेडी ने दर्शकों का दिल जीत लिया। और फिर इसी साल यानि 1959 में आई दिल देके देखो ने तो इनकी ज़िंदगी ही बदल दी। ये इंडस्ट्री के स्थापित कॉमेडियन बन गए।
साल 1961 में आई देवानंद की जब प्यार किसी से होता है फिल्म में राजिंदरनाथ जी ने पोपटलाल का किरदार निभाया था। और सही मायनों में यही वो फिल्म साबित हुई जिसने राजिंदर जी को स्टार कॉमेडियन का दर्जा दिलाया। राजिंदरनाथ को पूरे भारत में पहचान मिल गई। और लोग इन्हें पोपटलाल के नाम से जानने लगे। फिर तो इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक से बढ़कर एक फिल्मों में इन्होंने अभिनय किया। प्रेमपत्र, मुझे जीने दो, उसने कहा था, ये रास्ते हैं प्यार के, तेरे घर के सामने, हरे कांच की चूड़ियां, आए दिन बहार के, मेरे सनम, आन मिलो सजना, प्रिंस।
ये कुछ वो फिल्में हैं जो इन्होंने तब की थी जब ये अपने करियर के शिखर पर मौजूद थे। लेकिन साल 1969 में ये एक कार दुर्घटना का शिकार हो गए थे। और उस दुर्घटना का इनके जीवन व करियर पर बहुत बुरा असर पड़ा। किसी दिन राजिंदरनाथ जी की पूरी कहानी भी बयां की जाएगी। आज नहीं। क्योंकि फिलहाल इनकी पूरी कहानी लिख पाना मुमकिन नहीं। वो कहानी ज़रा लंबी है। और लंबी कहानी लिखने के लिए एक अलग ही माहौल की आवश्यकता होती है जो फिलहाल मेरे पास नहीं है। किस्सा टीवी हिंदी सिनेमा के बड़े प्यारे कॉमेडियन राजिंदरनाथ जी को नमन करता है। जय हिंद।