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अपनी भतीजी से शादी कर विजय उर्फ गोल्डी आनंद ने सबको चौंका दिया था!

अपनी भतीजी से शादी कर विजय उर्फ गोल्डी आनंद ने सबको चौंका दिया था!

विजय आनंद को गोल्डी आनंद के नाम से भी जाना जाता था. फिल्ममेकर, प्रोड्यूसर, स्क्रीन राइटर एक्टर विजय आनंद 22 जनवरी 1934 में पंजाब के गुरदासपुर में पैदा हुए थे.

 ‘गाइड’ (Guide), ‘तीसरी मंजिल’ (Teesari Manzil), ‘ज्वेल थीफ’ (Jwel Theif) और ‘जॉनी मेरा नाम’ (Johny Mera Naam) फिल्म बनाने वाले विजय के बड़े भाई चेतन आनंद डायरेक्टर- प्रोड्यूसर थे और देव आनंद एक्टर-डायरेक्टर थे. इन तीन भाईयों ने मिलकर ‘नवकेतन फिल्म्स’ (Navketan Films) बनाया था और विजय ने अधिकतर फिल्में इसी बैनर के तले की थीं. अच्छी फैमिली से ताल्लुक रखने वाले बेहद टैलेंटेड विजय जीवन के आखिरी पलों में बुरी तरह टूट गए थे और ओशो की शरण में चले गए थे.

इंग्लिश लिटरेचर के स्टूडेंड रहे विजय आनंद ने मात्र 23 साल की उम्र में सन 1957 में पहली फिल्म ‘नौ दो ग्यारह’ को डायरेक्ट किया था. जिस उम्र में नौजवान फिल्म की बारीकियां सीखते समझते हैं उस उम्र में विजय ने फिल्म ही बना डाली थी. इस लीजेंड फिल्ममेकर की शार्पनेस का अंदाजा इसी से लगाया जाता है कि मात्र 40 दिन के अंदर विजय ने अपने भाई देव आनंद और कल्पना कार्तिक के साथ फिल्म की शूटिंग भी पूरी कर ली थी. ये सब बचपन की संगत का नतीजा था कि फिल्मों को लेकर इतनी कम उम्र में समझ पैदा हो गई थी. इसके बारे में खुद मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया था.

डांस को लेकर गजब का जुनून विजय के अंदर था. मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में विजय आनंद ने बताया था कि ‘मैंने जोहरा सहगल, कामेश्वर सहगल, मोहन सहगल और गुरुदत्त जैसे लोगों के साथ बचपन बिताया था. बलराज और दमयंती साहनी लगभग हमारे घर में ही रह रहे थे. मेरे भाई चेतन उन्हें बॉम्बे ले आए और जब तक उन्हें रहने के लिए जगह नहीं मिली, वे हमारे साथ ही रहे. जोहरा और कामेश्वर ने हमारे पाली हिल होम में एक डांस स्कूल शुरू किया था’.
जिस तरह से कम उम्र में फिल्म बना कर सबको विजय आनंद ने चौंकाया था, उसी तरह अपनी ही एक छोटी उम्र की भतीजी से शादी कर विवादों में आ गए थे. सुषमा आनंद से शादी की थी, इनका एक बेटा है वैभव आनंद.

हिंदी सिने जगत को तमाम शानदार फिल्म देने वाले विजय आनंद जब बुलंदियों पर थे तो बुरी तरह डिप्रेशन का शिकार हो गए थे. अपने इस तनाव से छुटकारा पाने के लिए विजय आचार्य रजनीश की शरण में चले गए. ओशो के फॉलोवर रहे एक्टर को स्प्रिचुअल जर्नी से शायद सुकून मिला हो लेकिन 23 फरवरी 2004 को दिल का दौरा पड़ने से विजय का निधन हो गया.

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