लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी चूहों से जानवर और जानवर से इंसान में फैल सकती है। चूहों और कुत्तों की यूरिन के टच में आने से ये बीमारी मनुष्य में आ सकती है। क्राइमिन कांगो रक्तस्नावी बुखार (सीसीएचएफ) नामक वायरस गुजरात और राजस्थान में पाया गया है। अगर यह वायरस इंसान में आ जाए तो मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा निपाह और जीका वायरस से संक्रमित होने पर मनुष्य की मौत हो सकती है। यह कहना है कि डॉ. एसएस पाटिल का, जो वीरवार को लाला लाजपतराय पशु विज्ञान एवं पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय में आयोजित पशुचिकित्सा जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत कर रहे थे।
इस दौरान उन्होंने बताया कि इसके अलावा ब्रूसीलोसिस नाम की बीमारी भी पशुओं से इंसान में फैल सकती है। पशुओं को ब्रूसीलोसिस से बचाने के लिए सरकार ने वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया है। पूरे देश में किसानों को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है। पशुपालक 4 से 8 महीने की गर्भवती गाय को बीमारी से बचाने के लिए वैक्सीनेशन जरूर करवाएं। एक बार वैक्सीनेशन के बाद दोबारा से लगवाने की जरूरत नही पड़ती। प्राणी जन्य रोग को वैक्सीनेशन करके रोका जा सकता है। भैंस और गाय दोनों में ब्रूसीलोसिस बीमारी बराबर फैलती है और दोनों में समान रूप से खतरनाक है।
मेडिकल व वेटरनरी सेक्टर को मिलकर करना होगा काम
सेंटर फॉर वन हेल्थ कार्यक्रम के डायरेक्टर डॉ. जसबीर सिंह बेदी ने बताया कि वन हेल्थ प्रोग्राम विश्व स्तर पर शुरू हो चुका है। वन हेल्थ एक दृष्टिकोण है, जो ग्लोबल लेवल पर चल रही है, जिससे मनुष्य, जानवर और वातावरण में संतुलन बना रहे। इसके लिए तीन संगठन काम कर रहे हैं। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन व वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनीमल हेल्थ काम कर रही है। पशुओं और वन्य जीवन से आने वाली बीमारियों के लिए भारत में 2006 में पहली नेशनल जूनोसिस कमेटी बनाई गई थी, जो जानवरों व पशुओं से होने वाली बीमारियों को रोकने का काम कर रही है।
जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों का 19वां अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन वीरवार से शुरू हुआ
वन हेल्थ कार्यक्रम को कामयाब करने के लिए मेडिकल सेक्टर और वेटरनरी सेक्टर का मिल कर काम करना जरूरी है। सहायक महानिदेशक पशु स्वास्थ्य नई दिल्ली डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि वन हेल्थ का महत्वपूर्ण उद्देश्य इको सिस्टम को साथ लेकर चलना है। जब तक इको सिस्टम सही है तब तक प्लेनेट स्वस्थ है। कई बार विभाग एकांत में काम करते हैं, जिसमें से कुछ संसाधन मेडिकल के पास है। विभिन्न सेक्टर हैं जो अलग- अलग काम न करके साथ मिलकर काम करें जिससे इको सिस्टम का संतुलन बना रहे।
लुवास में पशुचिकित्सा एवं जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग एवं भारतीय पशुचिकित्सा जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों के संगठन के संयुक्त तत्वावधान में पशु चिकित्सकों के जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों का 19वां अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन वीरवार से शुरू हुआ। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार पिछले तीन से अधिक दशकों से मनुष्यों में उभरने वाली लगभग 75 प्रतिशत संक्रामक बीमारियां जानवरों, मुख्य रूप से वन्यजीव प्रजातियों से उत्पन्न हुई हैं।
वन हेल्थ दृष्टिकोण अपनाना अब समय की मांग
ये जूनोटिक बीमारियां अत्यंत महत्वपूर्ण समस्याएं पैदा करती हैं और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और आर्थिक कल्याण के लिए भी खतरा है। ब्रुसेलोसिस, टीबी, इबोला, सार्स और एवियन इन्फ्लूएंजा जैसे जूनोटिक रोगों की रोकथाम के लिए वन हेल्थ दृष्टिकोण अपनाना अब समय की मांग बन चुका है। सम्मेलन की मुख्यातिथि व अग्रोहा मेडिकल कॉलेज की निदेशिका डॉ. अलका छाबड़ा ने कहा कि वन हेल्थ के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए वेटरनरी और मेडिकल प्रोफेशनल को कंधे से कंधा मिलाकर चलना आवश्यक है। विशिष्ट अतिथि सहायक महानिदेशक पशु स्वास्थ्य, नई दिल्ली डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि आज के महामारियों के युग में वन हेल्थ की अवधारणा से ही संक्रमित रोगों से बचा जा सकता है।
चार तकनीकी सत्रों का किया गया आयोजन
सम्मेलन के पहले दिन चार तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। पहले सत्र में डॉ. नवनीत ढंड (यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी ऑस्ट्रेलिया) ने बताया कि कैसे हम महामारी विज्ञान क्षमता को सुदृढ़ बनाकर ट्रांसबाउंड्री और उभरते हुए नए संक्रमित रोगों का निदान कर सकते हैं। दूसरे सत्र में डॉ. जेपीएस गिल ने मानव और पशु दोनों में एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग के कारण रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग के कारण इन दवाइयों का असर कम होता जा रहा है और यह एक वैश्विक खतरे के तौर पर उभर रहा है।
तीसरे सत्र में प्रो. सिमोन मोर (यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलीन, आयरलैंड) ने पशु स्वास्थ्य में अंतरराष्ट्रीय नीति को सही और प्रभावी ढंग से बनाने के लिए वैज्ञानिकों में जनहित अनुसंधान के प्रति प्रतिबद्धता होना बहुत जरूरी है। चौथे सत्र में मुर्गी विशेषज्ञ डॉ. एनके महाजन ने बताया कि एवियन इन्फ्लूएंजा(बर्ड फ्लू) दुनिया भर में पोल्ट्री उद्योग, वन्य जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है। पशु चिकित्सा, मानव स्वास्थ्य और वन्य जीवन के बीच निरंतर अनुसंधान, निगरानी के लिए वन हेल्थ के तहत एक प्राधिकरण इस वायरस से जुड़े जोखिमों की निगरानी और उन्हें कम करने के लिए बनाए जाने की जरूरत है।
इन्हें किया सम्मानित
इस अवसर पर पूर्व कुलपति महाराष्ट्र विश्वविद्यालय डॉ. आशीष पातुरकर को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया व पांच वैज्ञानिक डॉ. टीश्री निर्वासन राय, डॉ. रणधीर सिंह सैनी, डॉ. एसके नागपा, डॉ. शरण गौड़ा पाटिल और डॉ. समीर दास को इंडियन एसोसिएशन ऑफ वेटरनरी पब्लिक हेल्थ फेलो अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।