सुनील यादव
उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग,नगर पुलिस अधीक्षक एवं थाना प्रभारी को जारी किया नोटिस
रायपुर : मामला सूचना का अधिकार के तहत समय सीमा पर जानकारी नहीं देने तथा जुर्माना व अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं किए जाने का है जिसमे छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं छत्तीसगढ़ मानव अधिकार फाउंडेशन के संस्थापक लवकुमार रामटेके द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जनसूचना अधिकारी थाना प्रभारी दुर्ग से 2 नवम्बर 2020 को आवेदन प्रस्तुत कर एक जप्त मामले से संदर्भ बिंदुओं की जानकारी चाही गई थी। जिसे जनसूचना अधिकारी राजेश बागड़े द्वारा उक्त बिल को चालान के साथ न्यायालय में पेश करने की बात कहते हुए समय सीमा पर जानकारी नहीं दी गई थी। जनसूचना अधिकारी से असंतुष्ट होकर आवेदक द्वारा प्रथम अपीलीय अधिकारी नगर पुलिस अधीक्षक दुर्ग के समक्ष 1 दिसंबर 2020 को विधिवत आवेदन प्रस्तुत की गई जिस पर प्रथम अपीलीय अधिकारी नगर पुलिस अधीक्षक ने थाना प्रभारी दुर्ग को यह निर्देश जारी किया कि वह आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी के अभिलेखों का अवलोकन कर स्पष्ट करें कि उक्त प्रकरण में जप्त की गई है तो जप्त पक्ष न्यायालय में अभियोग पत्र के साथ पेश किया गया है अथवा नहीं तथा उक्त संबंध में प्रमाणित दस्तावेज के संदर्भ मे अपीलार्थी को एक सप्ताह के भीतर सूचित करें।
जनसूचना अधिकारी द्वारा जानकारी नहीं देने पर श्री रामटेके ने द्वितीय अपील अधिकारी छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के समक्ष 23 जनवरी 2021 को अपील प्रस्तुत कर नियमानुसार 25 हजार रूपयें की अर्थदंड लगाकर दंडात्मक कार्यवाही कीए जाने की मांग की साथ ही उत्तरवादीगणों से मानसिक,शारीरिक व आर्थिक हानि के लिये दो-दो लाख रुपये क्षतिपूर्ति की मांग की.
राज्य सूचना आयोग द्वारा जारी नोटिस का जवाब थाना प्रभारी दुर्ग भूषण एक्का द्वारा दिया गया। जिसमें उन्होंने बताया कि न्यायालय के आदेश से जप्त मामले के दस्तावेज थाना में रखा गया है यदि इसकी प्रति चाहिए तो न्यायालय से आदेश प्राप्त करने पर ही दिया जा सकता है उक्त तथ्यों के आधार पर राज्य सूचना आयोग ने माना की जनसूचना अधिकारी थाना प्रभारी द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत चाही गई जानकारी 30 दिन के भीतर में उपलब्ध नहीं कराई गई और ना ही निर्धारित समय पर आवेदक को सूचित किया गया साथ ही आयोग ने यह भी निर्देशित किया कि प्रकरण में किए गए विलंब के लिए जन सूचना अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा जाए और स्पष्टीकरण संतोष जनक नहीं होने पर सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20(2) के तहत आवश्यकता अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई कर आयोग में प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।
जिसे लेकर लव कुमार रामटेके द्वारा बताया गया कि राज्य सूचना आयोग की उक्त आदेश को माननीय उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए जनसूचना अधिकारी सहित प्रथम अपीलीय अधिकारी व राज्य सूचना आयोग के प्रति कार्रवाई करने हेतु निवेदन किया साथ ही नियमानुसार 25 हजार रूपए के अर्थदंड और अनावेदक से बगैर टीडीएस काटे 5 लाख रूपये आर्थिक मानसिक व शारीरिक क्षति पूर्ति के रूप में मांग किया गया है। माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर ने याचिकाकर्ता व शासन के पक्ष को सुनने के बाद अनावेदकगणों को सूचना पत्र (नोटिस) जारी करते हुए तीन सप्ताह का समय दिया गया है।